बॉलीवुड के नामचीन फिल्मकार संजय लीला भंसाली अपनी भांजी शर्मिन सहगल को अपने प्रोडक्शन की फिल्म मलाल से बतौर हीरोइन पेश कर रहे हैं.
बॉलीवुड के नामचीन फिल्मकार संजय लीला भंसाली अपनी भांजी शर्मिन सहगल को अपने प्रोडक्शन की फिल्म मलाल से बतौर हीरोइन पेश कर रहे हैं. लेकिन वो खुद इस फिल्म का निर्देशन नहीं कर रहे हैं बल्कि उन्होंने निर्देशन की जिम्मेदारी मराठी फिल्म के निर्देशक मंगेश हडावले को सौंपी है. मंगेश ने जहां अपनी मराठी फिल्म टिंग्या से सफलता की ऊंचाई को छुआ है वहीं हिंदी फिल्म ग्रेट इंडियन सर्कस से कई नेशनल और इंटरनेशनल अवार्ड बटोरे हैं.
डेब्यू फिल्म का निर्देशन मामा नहीं कर रहे इस सवाल पर बिंदास शर्मिन कहती हैं, ‘संजय सर पारखी जौहरी हैं. उन्हें मालूम है कि कौन उनकी मिजाज की फिल्म की हीरोइन है. मलाल उस तरह की फिल्म नहीं है जिस तरह की फिल्में वो निर्देशित करते हैं. हां, जिस दिन मैं उनकी फिल्म की हीरोइन बनने के काबिल हो जाऊंगी उस दिन मैं खुद उनके सामने जाकर कहूंगी कि मेरा ऑडिशन लीजिए.’
शर्मिन ने मेरी कॉम और बाजीराव मस्तानी में भंसाली को असिस्ट किया है. इसलिए उन्हें किसी फिल्म को लेकर भंसाली की सोच के बारे में बखूबी पता है. वो वाकिफ हैं कि भंसाली अपनी फिल्म की लीड जोड़ी किस तरह से तय करते हैं. ‘रिश्तेदारी का हवाला देकर संजय सर से यह कहने की मुझमें हिम्मत नहीं थी कि मेरी डेब्यू फिल्म डायरेक्ट करें.’ शर्मिन हंसते हुए कहती हैं. भंसाली की असिस्टेंट रहने के कारण वो उनको मामा की बजाय संजय सर ही कहती हैं.
मलाल में आज की प्रेम कहानी है. लेकिन यह प्रेम कहानी मुंबई की चॉल में है जबकि मुंबई के विकास के साथ अब चॉल सिस्टम खत्म होता जा रहा है. प्रेम कहानी मराठी युवक शिवा (मीजान जाफरी) और हिंदी भाषी युवती आस्था के बीच है. भाषा का द्वंद प्रेम कहानी को प्रभावित करता है वो भी दिख सकता है. यह फिल्म एक साउथ इंडियन फिल्म की रीमेक है. पंद्रह साल पहले बनी इस फिल्म को आज के दर्शकों के हिसाब से लिखा गया है. शर्मिन कहती हैं, ‘फिल्म की आस्था मेरी निजी जिंदगी से बिल्कुल मेल नहीं खाती है. इसलिए इस किरदार को अपने अंदर समाने में दो साल लग गए. चॉल का माहौल ऐसा है कि उसमें शिवा से प्यार करना आसान नहीं है. लगता है कि आस्था दब जाएगी. लेकिन शिवा के आगे आने से आस्था खुलकर सामने आती है.’
शर्मिन को भरोसा है कि यह प्यार देखने के लिए दर्शक थिएटर जरूर आएंगे. यह प्यार भी प्यार ही है. मगर इसमें कुछ अनोखापन है. शर्मिन कहती हैं, ‘मेरी मां बेला सहगल खामोशी एडिट कर रही थीं तब मैं उनके पेट में थी. उस समय से मेरा फिल्म इंडस्ट्री से कनेक्शन है. हां, 10 से 17 साल की उम्र तक मैंने डाक्टर बनने का सपना संजोया था. लेकिन स्कूल के थिएटर में ज्वाइन करने के बाद मैंने तय कर लिया कि मुझे ऐक्टर ही बनना है. तब मैं मोटी थी और मेरा वजन 94 किलो थी. अनीत दास मेरे थिएटर टीचर थे. उन्होंने हौसला दिया और मां ने वजन कम कराने में मदद की.’
भंसाली को असिस्ट करने के दौरान प्रियंका चोपड़ा, रणबीर सिंह और दीपिका पादुकोन को देखकर शर्मिन को समझ में आया कि स्टार कैसे बनते हैं. स्टार का चेहरा इतनी आसानी से नहीं बिकता है. इसके लिए कितने लोगों की मेहनत लगती है. उसी ऊर्जा के साथ शर्मिन ने मलाल की हीरोइन बनकर काम किया है. अपनी ऐक्टिंग में निखार लाने के लिए शर्मिन अमेरिका जाकर ऐक्टिंग का पाठ पढ़ा जहां उनके साथ जाह्न्वी भी थी. वो जाह्न्वी को छोटी बहन मानती हैं. शर्मिन दिल खोलकर कहती हैं. ‘मीजान मेरे लिए लकी हैं. वो मेरे स्कूल के दोस्त हैं और अब करियर की पहली फिल्म के हीरो भी.’
शर्मिन ने जहां असिस्ट करने के दौरान भंसाली की निर्देशन कला को देखा वहीं मंगेश के निर्देशन में बतौर हीरोइन काम किया. इन दोनों के निर्देशन की खासियत क्या है? इस बारे में शर्मिन बताती हैं, ‘मंगेश सर का विजन यह है कि बीस रूपए का नोट उड़ रहा है और उसके पीछे एक बच्चा दौड़ रहा है. संजय सर के विजन में दरबार, ग्रेट कास्ट्यूम मतलब भव्यता. वो परफेक्शनिस्ट हैं. मंगेश पूरे इमोशन को देखते हैं. संजय माइक्रो से इमोशन देखते हैं. संजय जादू क्रिएट करेंगे. मंगेश इंतजार करेंगे कि जादू आएगा और आता है. मंगेश सिचुएशन में डालते हैं और जादू का इंतजार करते हैं. संजय सर सिचुएशन को लेकर जादू निकालते हैं. मजा दोनों में आता है.’
अब यह भी है कि बतौर प्रोड्यूसर संजय और निर्देशक मंगेश मलाल में साथ हैं तो इससे कुछ नया ही देखने को मिलेगा दर्शकों को.