@आशीष कुमार / आशीष सागर
- जनपद बाँदा के शहरी भूभाग से लगे केन नदी के तट पर बने ऐतिहासिक भूरागढ़ दुर्ग को पर्यटन विभाग 10 करोड़ रुपये से विकसित कर रहा है।
- केन नदी पर रिवर फ्रंट का काम शुरू है और भूरागढ़ क़िले मे भी लखनऊ की सिंह कंस्ट्रक्शन कंपनी ने पड़ाव डाल दिया है।
- दस करोड़ रुपये का बजट अभी आवंटन हुआ है, आवश्यकता पड़ी तो शासन से और लेगा पर्यटन विभाग।
- भूरागढ़ दुर्ग मे दी गई थी क्रांतिकारीयों को फांसी,मकर संक्रांति मे लगता है नट बलि का मेला।
बाँदा। चित्रकूट मंडल के ज़िला मुख्यालय मे शहरी भूभाग से लगे भूरागढ़ दुर्ग के अच्छे दिन आ सकते है। क्षेत्रीय पर्यटन अधिकारी श्री अनुपम श्रीवास्तव कहते है कि उत्तरप्रदेश सरकार ने बुंदेलखंड के हर ज़िले मे ऐतिहासिक धरोहरों खाशकर किला, प्राचीन तालाब, पुरातात्विक महत्व के मंदिरों को संरक्षित करने के उद्देश्य से उन्हें पर्यटन स्थल के रूप मे विकसित करने का खाका तैयार किया है। इसके मद्देनजर बाँदा मे ऐतिहासिक भूरागढ़ दुर्ग को भी संवारा जाएगा। यहां केन नदी पर रिवर फ्रंट बनेगा एवं किले मार्ग को दुरस्त करके वहां म्यूजिकल फाउंटेन अर्थात संगीत पर चलने वाला फव्वारा लगाया जाएगा। शासन ने दस करोड़ की धनराशि मे 4.86 करोड़ रुपया स्वीकृति दी है। वहीं भूरागढ़ मे लोगों के बैठने की व्यवस्था होगी। आकर्षक रंगबिरंगी लाइट, लेजर साउंड शो भी होगा ताकि स्थानीय नागरिकों व बाहरी लोगों को इस दुर्ग के इतिहास व भारत के स्वाधीनता आंदोलन मे भूमिका की जानकारी हो सके। उल्लेखनीय है कि केन नदी जिसका प्राचीन नाम कर्णवती था उसके किनारे निर्मित महाराजा छत्रसाल के पुत्रों क्रमशः हृदय शाह और जगत राय से जुड़ा है। जगत राय के पुत्र कीरत सिंह ने 1787 तक यहां राज्य किया। तत्पश्चात अली बहादुर ने सत्ता संभाली थी।
इतिहासकार रहे दिवंगत श्री राधाकृष्ण बुंदेली व बाँदा के चर्चित कवि स्वर्गीय केदारनाथ ( केदार बाबू) को केन और भूरागढ़ से असीम स्नेह रहा है। बुजुर्ग बतलाते है कि यह किला भले ही आज जर्जर अवस्था और स्थानीय नागरिकों की अनदेखी का शिकार हो लेकिन अतीत मे इसकी वीरता के किस्से युवाओं को आजादी की लड़ाई मे हुए सहयोग की याद दिलाते है। क्रांतिकारियों की शरण स्थली और वीरगति का प्रतीक रहा भूरागढ़ दुर्ग कुछ वर्ष तक नवाबों के कब्जे मे भी रहा है।
बाँदा नवाब की तीसरी पीढ़ी से जुड़े भोपाल रहवासी (बाँदा स्टेट ) नवाब शादाब अली बहादुर की मानें तो भूरागढ़ दुर्ग को 1857 की क्रांति मे अंग्रेजों ने चारों तरफ से घेर लिया और क्रांतिकारियों को भूरागढ़ क़िले के गेट के ऊपर कुंदे पर 2000 हजार क्रांतिकारियों को फांसी दी गई थी। जिसमें भारत सरकार के गैजेट रिकॉर्ड मे 800 शहीदों के नाम आज भी दर्ज है। अमर जवान पट्टिका इसका क्रांति स्तम्भ है। नवाब अली बहादुर ने इसका पुनर्निर्माण कराया था। नवाब अली बहादुर प्रथम से नवाब अली बहादुर द्वितीय तक यहां नवाब की हुकूमत रही।
क्या है भूरागढ़ दुर्ग-
बाँदा का ऐतिहासिक भूरागढ़ दुर्ग 14 जून 1857 को यहां हुए युद्ध का नेतृत्व भी किया है। बाँदा मे अली बहादुर द्वितीय ने भूरागढ़ से इसका आगाज किया था। गौरतलब है ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ इस जंग मे बाँदा, कानपुर, बिहार आदि राज्यों से क्रांतिकारी शामिल हुए थे। इतिहास के पन्ने बतलाते है कि 1857 को क्रांतिकारीयों ने ज्वाइंट मजिस्ट्रेट काकरेल की हत्या कर दी थी। पकड़े जाने पर अंग्रेजों की अदालत से उन्हें काला पानी और फांसी की सजा दी गई। इस युद्ध मे अली बहादुर द्वितीय को शहादत देनी पड़ी थी। उस वक्त भूरे पत्थरों से बना यह दुर्ग अपनी सुरक्षा व्यवस्था और नदी तट पर होने से अभेद युद्ध रचना का भी उदाहरण था। तब केन नदी का भरापूरा यौवन, नदी के चौड़े पाट और आसपास विस्तार लिए वनक्षेत्र किले की शान मे चारचांद लगा देता था। सूर्यास्त के वक्त यहां का नजारा अलग होता है।
यहां लगता है नट बलि का मेला-
बाँदा मे भूरागढ़ दुर्ग पर हर मकर संक्रांति को नट बलि का प्राचीन मेला लगता है। इसको स्थानीय युवाओं मे प्रेमी-प्रेमिका का मेला भी कहते है। जानकार कहते है कि भूरागढ़ दुर्ग के राजा की पुत्री से पास के किसी नट को प्रेम हुआ था। यह नट रस्से मे चलने का हुनरमंद था। राजा की शान मे यह बड़ी गुस्ताखी थी। उन्हें जानकारी मिलने पर शर्त रखी गई कि यदि नट नदी को पार करके रस्से पर चलकर किले तक आएगा तो उसका विवाह राजकुमारी से कर दिया जाएगा। नट राजा की चालबाजी से बेखबर था। उसने रस्से से आधा मार्ग पार कर किया लेकिन क़िले के समीप पहुंचते ही राजा के मंत्रियों / कारिंदो ने रस्सा काट दिया जिससे नट की नदी तट पर गिरकर मौत हो गई। तब से यह मेला लगता है, यहां नट की समाधि भी है।
क़िले मे जल कुंड जर्जर-
भूरागढ़ दुर्ग मे एक बड़ा जलकुंड है। यह अब जर्जर व प्रदूषण की चपेट मे है। प्लास्टिक व गंदगी से इसका हाल बेहाल है। यह सुरक्षित हो तो वर्षा जलसंरक्षण की नजीर बन सकता है।
पर्यटन के नजरिए से प्रासंगिक-
भूरागढ़ दुर्ग पर्यटन की नजर से महत्वपूर्ण धरोहर है। इतिहास भी इसका सुदृढ़ है लेकिन वर्तमान मे इसके भूभाग पर शहरी , ग्रामीण लोगों ने अवैध कब्जे कर रखे है। यहां तक कि वे नल-बिजली कनेक्शन लेकर पक्के मकान बना लिए है। किले मे एक सन्यासी आश्रम बनाये है। वहीं गाहेबगाहे जरायम से जुड़े युवा जुआ आदि यहां खेलते है और रंगीनमिजाज लोग आते है। किले की दीवार पर लड़के-लड़कियों ने अपने मोबाइल नम्बर लिख रखें है। पर्यटन विभाग / प्रशासन इसको विकसित करने के साथ-साथ सुरक्षित भी करे तो और अच्छा कदम होगा। इससे बाँदा के युवाओं को आजादी मे बलिदान की प्रेरणा मिलेगी। वे अपने पूर्वजों की विरासत को चिरंजीवी रखने का संकल्प ले सकेंगे। फिलहाल चित्रकूट पर्यटन विभाग की यह पहल नेक है…