” विगत 31 मई 2022 को राजाभैया यादव ( विद्याधाम समिति अतर्रा / चिंगारी) द्वारा अपनी कार्यकर्ता रही मानिकपुर ग्राम बगदरी की दलित महिला ललिता पत्नी कमलेकर प्रसाद से बाँदा के पत्रकार व पर्यावरण पैरोकार आशीष सागर दीक्षित पर हरिजन एक्ट समेत छेड़छाड़ का फर्जी मुकदमा लिखाया गया। इसका खुलासा स्वंय ललिता एवं मीरा (गवाह ) ने एसपी कार्यालय के बाहर मीडिया से वीडियो बयान मे किया है। दोनों महिलाओं के मीडिया बयान आज देश की जनता देख रही है। गौरतलब है कि इस साजिश के विरुद्ध तत्कालीन एसपी श्री अभिनंदन सिंह से गुहार लगाने गई ‘पत्रकार’ की माँ समेत 9 गरीब महिलाओं पर भी 6 धाराओं मे कुछ अराजक खबरनवीसों के भड़काने पर तत्कालीन सीओ सिटी श्री राकेश कुमार सिंह,नगर कोतवाल रहे श्री राजेन्द्र सिंह रजावत आदि ने महिला पुलिस एसआई मोनी निषाद से कूटरचित मुकदमा दर्ज कराया था। महत्वपूर्ण यह है कि इस पर भी दुराग्रह पूर्ण चार्जशीट माननीय न्यायालय मे पेश की गई। सवालों के कटघरे मे खड़ी ललिता और राजाभैया यादव के दरम्यान बाँदा पुलिस ने जो देश के बड़े मंचो मे सम्मानित पत्रकार एवं सामाजिक कार्यकर्ता के साथ कुचक्र रचा था वह भी न्यायालय की देहरी पर सच्चाई की कसौटी मे परखा जाएगा। कि कैसे उत्तरप्रदेश की पुलिस किसी का चारित्रिक मर्दन करके उसको सुनियोजित अपराधी बनाती है।”
बाँदा। बुंदेलखंड के बाँदा मे बीते 13 दिसंबर को राजाभैया यादव के विरुद्ध दो महिलाओं का हल्ला बोल सुर्खियों मे है। अतर्रा निवासी राजाभैया यादव पिछले पंद्रह साल से विद्याधाम समिति व महिला संगठन चिंगारी चलाते है। ये चिंगारी यूं तो कई लोगों का घर-परिवार कूटरचित मुकदमों से बर्बाद कर चुकी है। लेकिन इस बार चिंगारी से जुड़ी रही दो महिलाओं ने स्वयं मीडिया और प्रशासन के सामने आकर राजाभैया को आरोपों की बौछार से तरबतर कर दिया है। बतलाते चले कि दोनों कथित पीड़िताओं ने लगभग दो साल विद्याधाम समिति मे काम किया है। इनके शिकायत पत्र इस बात की बानगी है कि उनमें लिखे शब्दों को निष्पक्ष जांच एजेंसी के खांचे की ज़रूरत है जहां सच और झूठ दर्पण की तरह पारदर्शी होकर स्पष्टीकरण दे सके। कहते है यूं ही कोई अपने कुनबे से बागी नही होता… चिंगारी और विद्याधाम से जुड़ी रही दोनों महिलाओं की आपबीती बीते 14 दिसंबर को लिखी थी। वो खबर लिंक खोलकर अवश्य पढ़ियेगा, लिंक नीचे है।
यह उसकी दूसरी कड़ी है। बाँदा के पुलिस अधिकारियों समेत देश की राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री समेत कई जगह प्रेषित उक्त दोनों महिलाओं के प्रार्थना पत्र विचारणीय है। दोनों महिलाओं ने राजाभैया द्वारा अपने अस्तित्व, लोकलज्जा, जातिगत, आर्थिक, सामाजिक उत्पीड़न के साथ अन्य वित्तीय आरोप लगाए है। सवाल यह भी की विगत दो वर्ष से यह मौन क्यों थी ? सवाल यह भी कि राजाभैया को हर बार प्रशासन अभय दान कैसे देता है तब जबकिं वर्तमान सरकार की राष्ट्रवादी विचार धारा से इतर खांटी समाजवादी नेताओं के आसपास होने का महिमामंडन खुद राजाभैया गाहेबगाहे करते रहते है। वे बाँदा से जुड़े राजनीतिक कद्दावर नेताओं को अपनी मौका परस्ती के मुताबिक ढालते व प्रयोग करते है। महिलाओं ने बीते 13 दिसंबर को अपर एसपी जी से भेंट करने के बाद जो चार वीडियो बयान मीडिया को दिए है वह किसी भी आम नागरिक के अंतर्मन को झकझोरने के लिए पर्याप्त आधार है। कि कैसे एक निर्दोष ब्राह्मण, पत्रकार और डेढ़ दशक पर्यावरण को समर्पित युवा के माथे पर ‘बलात्कारी, दलित उत्पीड़न करने वाला, छेड़छाड़ मे अभ्यस्त,फिर हिस्ट्रीशीटर बना देता है।’
उल्लेखनीय है कि बीते 31 मई 2022 को जिन महिलाओं ने पत्रकार आशीष सागर दीक्षित पर फर्जी मुकदमा लिखाया था। वह खुद अधिकारियों की चौखट पर पहुंचकर मीडिया से बोल रहीं की हमने मुकदमा फर्जी लिखाया था। एक नही दो मुकदमे लगे दोनों फर्जी। पहले वर्ष 2016 मे बलात्कार का झूठा मुकदमा फिर 2022 मे छेड़छाड़ का मुकदमा। दोनों मे हरिजन एक्ट को औजार बनाया गया। आज वे दोनों महिला तीन दिन से अतर्रा थाने मे राजाभैया यादव पर एफआईआर को जद्दोजहद कर रहीं है। पीड़िता महिला के अनुसार उधर दरोगा जी कहते है तुमने पहले पत्रकार पर फर्जी लिखाया अब राजाभैया पर फर्जी लिखा रही हो। पहले मै 420 मुकदमा तुम पर लिखकर जेल भेज दूंगा। बड़ी पशोपेश मे उलझी दोनों महिलाओं की करुण कहानी हर उस स्त्री की कहानी है जिन्हें गरीब,अशिक्षित, बेसहारा मानकर निज स्वार्थ मे नारी उन्मुक्तिकरण की सामाजिक दुकानदारी मे इस्तेमाल किया जाता है। कभी समाज सेवा की विद्या मे चिंगारी बनाकर तो कभी उन्ही से झूठे मुकदमे लिखवाकर। और कभी उन्हें अपने किये कृत्यों का साक्ष्य देकर उन्हें ही न्याय मांगने के लिए मजबूर किया जाता है।
अलबत्ता यह दौर बाँदा की गैर सरकारी संस्थाओं / एनजीओ के सामाजिक पतनशीलता का है। कानून, समाजसेवा को आडंबर के इर्दगिर्द खबरों और सम्मानों का मिथ्या प्रतिमान स्थापित करने के लिए पूरी ताकत से क्रियान्वित किया जा रहा है।
महिलाओं ने फर्जी मुकदमा लिखाया, पत्रकार की बुजुर्ग माँ ने विरोध किया तो उन सहित 9 महिलाओं पर मुकदमा लिखा गया…
राजाभैया यादव के साज़िश पर 31 मई 2022 मे जब पत्रकार आशीष सागर दीक्षित पर जब इन्ही दोनों महिलाओं ने झूठा मुकदमा बाँदा के कुछ अराजक तत्वों से सांठगांठ करके लिखाया था। तब प्रशासन बालू-मौरम माफियाओं पर पत्रकार की खबरें पढ़कर नराज था। पैलानी, जसपुरा से शहर के कालूं कुआं तक का बालू कारोबारी एकजुटता से पत्रकार के खिलाफ अभियान मे शामिल था। हलात ये हुए कि पत्रकार पर इन्ही राजाभैया की शिकायत कर्ताओं से मुकदमा अपराध संख्या 424/2022 नगर कोतवाली मे हरिजन एक्ट, छेड़छाड़ का फर्जी मुकदमा लिखा गया। फिर जब बुजुर्ग माताजी ने ग्रामीण महिलाओं के साथ तत्कालीन एसपी श्री अभिनंदन सिंह की देहरी पर गुहार लगाई तो माँ सहित 9 महिलाओं पर भी झूठा मुकदमा 428/2022 नगर कोतवाली मे दर्ज किया गया।
इतना ही नही सात साल से कम अपराध वाली सजा मे माननीय सर्वोच्च न्यायालय के दिशानिर्देश ताक पर रखकर महिला कार्यकर्ता ऊषा निषाद, किसान पच्ची को 1 जून व पत्रकार को 16 एसओजी के जवानों की रेकी से 2 जून को जेल भेज दिया गया था। लगभग 20 दिन पत्रकार और एक सप्ताह महिला कार्यकर्ता कारागार मे रहीं। मजेदार है कि दोनों ही फर्जी केसों ( पत्रकार और माताजी व 8 महिलाओं ) पर जांच उपरांत चार्जशीट दाखिल की गई। डेढ़ साल तक बाँदा पुलिस ने अक्सर रात-बिरात पत्रकार के घर फोर्स भेजी। उनके बाहर आनेजाने की जानकारी ली जाती रही। वहीं महिला कार्यकर्ता को जेल से छूटने के बाद 2022 मे ही शांति भंग का चालान काटकर 4 दिन को जेल इसलिए क्योंकि माननीय मुख्यमंत्री को बांदा आना था। पत्रकार को भी तत्कालीन सीओ सिटी श्री राकेश कुमार सिंह घर से बुलवा लिए थे लेकिन करुणा और मिन्नत के बाद कि पत्रकार घर से कहीं नही जाएगा उन्हें पुलिस की निगरानी मे घर पर छोड़ दिया गया। इस पत्रकार पर पूर्व बीजेपी सांसद ने दो फर्जी मुकदमे (दोनों मे अंतिम रिपोर्ट ), बीजेपी महिला नेता व महिला आयोग की सदस्य रही नेत्री ने पत्रकार बड़कू के साथ नामजद कोविड काल मे एक मुकदमा (अंतिम रिपोर्ट), सरकारी भूमाफिया व लोकपाल से महाविद्यालय की संपत्ति बचाने के आंदोलन मे मुकदमों के प्रोत्साहन (दोनों पक्षों ने एफआईआर लिखाई थी ) व सम्मान से नवाजा है। पत्रकार ने जमानत ली लेकिन लोकपाल के सपूत माननीय न्यायालय से सम्मन, वारंट के बावजूद फरार है। वहीं उक्त पत्रकार उच्चन्यायालय मे अपनी आपराधिक हिस्ट्री को चुनौती दिए है और दो साल बाद वक्त की बिसात पर चिंगारी मे झुलसते राजाभैया यादव की सामाजिक विद्या का धाम निहार रहा है। इस व्यवस्था की इससे बेहतर विडंबना और क्या हो सकती है ?