सोशल मीडिया में बाधित वैचारिक आजादीहर्षदेवफेसबुक प्रतिष्ठान की विश्वसनीयता पर संदेह के काले बादल मंडरा रहे हैं। अमेरिका और ब्रिटेन में पहले ही उससे सख्त सवालों के जवाब मांगे जा रहे थे कि अमेरिकी अखबार वॉल स्ट्रीट जनरल में छपी एक खोज खबर ने भारत में भी उसके लिए खासी मुश्किलें पैदा कर दी हैं।
रायटर्स समाचार एजेंसी के अनुसार उसके पास फेसबुक के 11 कर्मचारियों का वह पत्र मौजूद है, जिसमें खुलासा किया गया है कि भारत में कम्पनी की नीति निदेशक आंखी दास ने भारतीय जनता पार्टी से जुड़े लोगों की साम्प्रदायिक-भड़काऊ सामग्री हटाने से रोका। साथ ही ऐसी पोस्ट डालने वालों पर कोई कार्रवाई से भी मना किया। महत्वपूर्ण बात यह है कि भारत विश्व में फेसबुक का सबसे बड़ा उपभोक्ता है जहां उसके 32 करोड़ से ज्यादा उपयोगकर्ता हैं। इस खोज खबर ने देश की राजनीति का तापमान काफी बढ़ा दिया है। कांग्रेस का तो सीधा आरोप है कि सोशल मीडिया, फेसबुक और व्हाट्सएप पर भारतीय जनता पार्टी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने कब्जा किया हुआ है।
फेसबुक का ईजाद 2004 में हार्वर्ड विश्वविद्यालय के छात्रों में आपसी संवाद के लिए हुआ था। जकरबर्ग यहीं पढ़ते थे। वह इस युक्ति को ले उड़े और चार सहपाठियों के साथ मिलकर यह कम्पनी शुरू कर दी, जिसने देखते ही देखते पूरी दुनिया में पांव पसार लिए। आज फेसबुक के 200 करोड़ से अधिक उपयोक्ता हैं। एक और बड़ी बात यह है कि लोगों का इससे जुड़ाव किसी व्यसन की तरह बढ़ता ही जा रहा है। सन् 2012 में जब इसका इस्तेमाल करने वालों की संख्या 100 करोड़ पर पहुंची थी तब फेसबुक द्वारा जारी तथ्यों के अनुसार उनमें से 55 प्रतिशत लोग उसका प्रयोग हर दिन करते थे। अब जब उनकी संख्या 2 अरब पर पहुंच गई है, उनमें से 65 प्रतिशत लोग इसका प्रतिदिन इस्तेमाल कर रहे हैं।
भारत की संसदीय समिति ने फेसबुक प्रबंधन को समन जारी करके कैफियत देने के लिए कहा है। विपक्ष की ओर से भी भारत और दक्षिण एशिया में कम्पनी की नीति निर्देशक आंखीदास से उनके आचरण के लिए चौतरफा जवाब मांगे जा रहे हैं। फेसबुक के ही स्टाफ के कुछ लोगों की ओर से यह जानकारी दी गई है कि व्यावसायिक फायदे के लिए आंखीदास ने मुस्लिम विरोधी भड़काऊ पोस्ट हटाने से मना किया। इनमें सबसे प्रमुख नाम तेलंगाना के भाजपा विधायक टी. राजासिंह का है, जिनके पोस्ट फेसबुक के अपने ही नियम-कायदों के खिलाफ थे और जिनमें मुस्लिम समुदाय के विरुद्ध बहुत आपत्तिजनक बातें कही गई थीं। ऐसे ही संदेश नेशन ऑफ़ इस्लाम के नेता लुइस फरक्खन और रेडियो होस्ट अलेक्स जोन्स ने भी पोस्ट किए। आपत्तिजनक होने के बावजूद आंखीदास ने निर्देश दिया कि मोदी की पार्टी से जुड़े लोगों के पोस्ट हटाने या उनके खिलाफ कार्रवाई करने से कंपनी के व्यावसायिक हितों को नुकसान पहुंचेगा।
भाजपा के प्रति नरमी के रिश्ते सामने आने के बाद कांग्रेस ने इस पूरे प्रकरण की जांच संयुक्त संसदीय समिति से कराने की मांग रखी है। दिल्ली विधानसभा की एक समिति भी फेसबुक के कुछ कर्मचारियों को पूछताछ के लिए बुलाने की तैयारी में है। यह पूछताछ वह दिल्ली में फरवरी महीने में हुए दंगों के दौरान व्हाट्सएप और फेसबुक द्वारा अपनाई गई भूमिका को लेकर की जानी है।
फेसबुक के प्रबंधन की ओर से नियम-कायदों को लागू किए जाने के तरीकों पर यूं ही तीखे सवाल नहीं उठ रहे हैं। दरअसल कम्पनी की नीति में एकरूपता ही नहीं है। उसके मुखिया जकरबर्ग अमेरिका में सांसदों से और विज्ञापनदाताओं से माफी मांगते हैं। ब्रिटिश सरकार उस पर पांच लाख पौंड का जुर्माना ठोक देती है जबकि सिंगापुर में कंपनी कहती है कि आपत्तिजनक पोस्ट वह तभी हटाएगी जब वे उसकी जानकारी में लाए जाएंगे। जहां तक भारत का प्रश्न है तो काफी समय बीत चुकने के बावजूद उसने कोई जवाब देने की जहमत तक नहीं उठाई है।
अकेले फेसबुक और व्हाट्सएप पर ही उंगलियां नहीं उठती रही हैं, गूगल भी उसमें शामिल है। इन कम्पनियों ने लाखों उपयोक्ताओं का डाटा व्यावसायिक इस्तेमाल के लिए बेच दिया। इस डिजिटल तकनीकी को लेकर दुनियाभर में पेचीदा समस्याएं सामने आ रही हैं। भारत में भी एक फोन सेवा प्रदाता कम्पनी ऐसा कर चुकी है। बाद में वह गलती से ऐसा होना बताकर बरी हो गई। डाटा के दुरुपयोग का प्रश्न भी बड़ा होता जा रहा है। प्राय: सभी देशों में सत्ताधारी अपने राजनीतिक एजेंडे को पूरा करने के लिए इस तकनीकी का बेजा इस्तेमाल करते हैं। वे इस तकनीकी की सुविधा प्रदान वाली कंपनियों से सांठगांठ करके अपनी ही जनता के साथ छल करते हैं। दुनियाभर में यह मांग जोर पकड़ रही है कि उपभोक्ताओं को फर्जी सूचनाएं और समाचार की पड़ताल करने और उनको खारिज करने की सुविधा उपलब्ध कराई जाए। इसके लिए एक विश्वसनीय निगरानी तंत्र बनाए जाने की जरूरत है।
यहां हमें विकीलीक्स के संस्थापक जूलियस असांजे की इस चेतावनी को जरूर याद रखना चाहिए कि इंटरनेट मानव सभ्यता के लिए अब तक का सबसे बड़ा खतरा है। असांजे ने अपनी पुस्तक सायफरपंक्स-फ्रीडम एंड फ्यूचर ऑफ इंटरनेट में यहां तक आगाह किया है कि फेसबुक और गूगल हमारी अवस्थिति (लोकेशन), हमारे संपर्क और हमारी खुफियागिरी करने वाले अब तक के सबसे बड़े आविष्कार हैं। असांजे यह भी पूछते हैं कि क्या इस तकनीक की सहायता से हम ऐसी चुनौती से पार पा सकते हैं और क्या विश्व उस स्वतंत्रता के साथ सांस ले सकता है, जिसका दावा इंटरनेट सुविधा प्रदान करने वाले करते हैं। वाल स्ट्रीट जनरल के खुलासे के बाद भारत में फेसबुक और उसकी सहयोगी व्हाट्सएप की भूमिका के मामले को लेकर भाजपा और कांग्रेस के बीच पैदा हुई राजनीतिक गरमागरमी को एक सामान्य घटनाक्रम के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए। यह बहुत गंभीर मसला है, जिसका सीधा संबंध लोगों की वैचारिक स्वतंत्रता, उनकी सामाजिक चेतना और राजनीतिक समझ से जुड़ा हुआ है। आगे होने वाली किसी भी जांच पड़ताल से पहले ही हमें इस नतीजे पर पहुंचने में कोई कठिनाई नहीं है कि यह एक विदेशी व्यापारिक कंपनी द्वारा सत्ता के साथ मिलकर करोड़ों लोगों को अनुचित तरीके से प्रभावित करने का निंदनीय कारनामा है।
इन तथ्यों के साथ यह भी स्वीकार करना होगा कि फेसबुक और सरकार के परस्पर संबंध और उनको संचालित करने वाले नियमों पर संदेह के गहरे बादल घिर आए हैं। हम 2013 से ही जब भाजपा अपने चुनावी अभियान का तूफान खड़ा कर रही थी, फेसबुक के मुखिया मार्क जकरबर्ग की अतिरिक्त सक्रियता के साक्षी रहे हैं। यह बहुत जरूरी है कि फेसबुक की सत्ता के गलियारों में आवाजाही और मिलीभगत से जुड़ी तमाम आशंकाओं और गलतफहमियों को सिरे से दूर किया जाये। यह तभी संभव होगा जब एक विश्वसनीय एजेंसी पूरे प्रकरण की जांच करे और सत्य को हमारे सामने लाए।