विश्व में टूटा एक और बर्फ का पहाड़,बढा खतरा: वर्ष 2020 खतरो का काल-खंड

प्रोफ. भरत राज सिंह

वैदिक विज्ञान केंद्र लखनऊ के अध्यक्ष व स्कूल ऑफ मैनेजमेन्ट साइंसेस लखनऊ के महानिदेशक प्रोफेसर भरत राज सिंह कहते है कि वर्ष 2020 दुनिया में काल का समय हो गया है। इस समय जब दुनिया भर में कोराना महामारी की मुसीबत से लगभग 31 लाख से अधिक लोग संक्रमित है और करीब 2 लाख से अधिक काल के गाल में जा चुके हैं।इन दुर्लभ हालातों में अब दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा बर्फ का पहाड़ आइसबर्ग टूट कर खुले समुद्र में तैर रहा है और खतरे का सबब बना हुआ है।

लेकिन अब इस पाइन-आइसबर्ग का पहाड़ जो 10-12 जुलाई 2017 में तीन साल पहले अंटार्कटिका (दक्षिणी-ध्रुव) में टूटा था और उसमें दरारें पड़ने लगी हैं, जिसके बाद से वैज्ञानिक चिंता में आ गए है।क्योंकि खुले समुद्र में, आते-जाते जहाजों के लिए, यह टूटा हुआ आइसबर्ग खतरा बन सकता है। इसके साथ ही यह समुद्र के जलस्तर में भी इजाफा कर सकता है और कहीं अगर यह किसी तटीय शहर के करीब तेजी से टकराता है, तो सुनामी जैसी बड़ी लहरें उठा सकता है। इससे आस-पास के इलाकों को भारी जन-मानस, जीव-जंतुओ और अर्थ-व्यवस्था को नुकसान पहुंच सकता है।

प्रोफेसर भरत राज सिंह कहते है कि 23 अप्रैल 2020 को यूरोपियन स्पेस एजेंसी के सैटेलाइट सेंटीनल-1 से ली गई फोटो के अध्ययन से वैज्ञानिको ने इस आइसबर्ग को ए-68ए नाम दिया हैं। वही पर टूटा हुआ यह आइसबर्ग खुले समुद्र में गर्म क्षेत्र की तरफ बढ़ रहा है और इसमे दरारें भी पड़ने लगी हैं, जो बेहद खतरनाक होने जा रही हैं।डा0 भरत राज सिह, जो वरिष्ठ पर्यावरणविद व स्कूल ऑफ मैनेजमेंट साइंसेज लखनऊ के महानिदेशक है उन्होंने बताया कि तीन साल पहले 10-13 जुलाई 2017 को पाइन- आइसवर्ग(ए-68) जब अंटार्कटिका पश्चिमी छोर से अलग हुआ था तब उन्होने बताया था कि वह 5890 वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल अनुमानित मोटाई 650 मीटर और वजन 1-खरब (ट्रिलियन) टन का था ।

इसकी समुद्र में चलने की गति लगभग 3किलोमीटर प्रति घंटे की आंकी गयी थी।आज समुंद्र में धीरे-धीरे पिघलकर 5100 वर्ग किलोमीटर का ही बचा है। ये इतना विशालकाय है कि इस पर न्यूयॉर्क के आकार के 5 शहर बराबर बसाये जा सकते है। बीते 3-सालों से यह वेड्डेल सागर में घूम रहा है और इसी में से एक बहुत बड़ा टुकड़ा एक वर्ष वाद 2018 में अलग होकर बाहर निकला, जिसका नाम दिया गया है ए-68ए। लेकिन अब ए-68ए में से भी एक टुकड़ा अलग हुआ है, जिसका नाम ए-68सी है।एड्रियन ल्यूकमैन जो स्वानसी यूनिवर्सिटी में जियोलॉजी के प्रोफेसर हैं और 3-सालों से इस आइसबर्ग पर नजर रख रहे हैं। उन्होंने इस अलग हुए आइसबर्ग का नाम ए-68सी रखा। अलग हुये ए-68ए आइसबर्ग की लम्बाई 19 किलोमीटर है और आकार करीब 175 वर्ग किलोमीटर है।

इसे देखने से ऐसा लगता है कि यह दक्षिणी अमेरिका के नीचे की तरफ दक्षिणी जॉर्जिया और दक्षिणी सैंचविच आइलैंड की तरफ जा रहा है।प्रोफ़० सिंह यह भी बताते हैं कि इस आधुनिक युग में, जब हम अपनी वैज्ञानिक खोज से पूर्वानुमान लगा लेते है, तब भी विश्व मैं कुछ विकसित और विकासशील देश जन-मानस को सही आँकड़ों से अवगत नही कराते है।प्रोफ़० सिंह ने बताया कि उक्त घटना की पूर्व में ही, उन्होने अपनी किताब ग्लोबल वार्मिंग –काजेज, इम्पैक्ट एंड रेमेडीज, जो क्रोशिया में अप्रैल 2015 में प्रकाशित हुयी थी, में उल्लखित किया गया था कि अंटार्टिका (दक्षिणी ध्रुव) के पाईन-आइसबर्ग के पक्षिमी क्षेत्र से एक विशाल दरार नासा के सेट-लाइट के चित्र से देखी गयी है |

इस पर नासा के वैज्ञानिको का मत था कि इस प्रकार की दरारे बर्फ के पुनर्जमाव से भर जाती हैं । प्रोफ़० सिंह का मत था कि अब दरार ऐसी स्थिति से गुजर चुकी है जिसे अपने पूर्व स्थान पर पुनः वापस पहुचाना असम्भव है।अतः इसका टूटना निश्चित है। जो घटना किताब के प्रकाशन के मात्र दो-वर्षो के अन्तराल पर घटित हो गयी थी।

प्रोफ़० सिंह का कहना है कि पिछले 3-वर्षो में लगभग 800 वर्ग किलोमीटर पिघल गया और बचा हुआ 5100 वर्ग किलोमीटर का पाइन आइसबर्ग अभी केवल 3-वर्षो में 3285 किलोमीटर ही समुद्र में दक्षिणी अमेरिका तरफ आगे बढा है। जबकि अंटार्टिका से दक्षिणी अमेरिका की दूरी 9805 किलोमीटर है।अतः इसे दक्षिणी अमेरिका पहुचने में लगभग 6-वर्ष और लगेगे,अर्थात 2026 तक। इसके पिघलने के उपरांत समुद्र के पानी की सतह लगभग 3.2 मीटर (10-11फीट) बढ जायेगी और विश्व के कई निचले हिस्से डूब जायेगे और इसका बिना पिघला हुआ हिस्सा भी 2000-2700 वर्ग किलोमीटर का होगा, जिसके टक्कर और समुद्री तूफानौ से भारी नुकसान से भी नकारा नही जा सकता है।

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