Raghuram Rajan: भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने महंगाई पर बड़ी चेतावनी दी है. भारत के केंद्रीय बैंक की ओर से रेपो रेट तय करते समय खाने-पीने की चीजों की कीमतों को कैलकुलेशन से बाहर रखने पर चिंता जाहिर की है. उन्होंने खाद्य कीमतों को मुख्य महंगाई में शामिल नहीं किए जाने पर असहमति जताते हुए कहा है कि इससे केंद्रीय बैंक से लोगों का भरोसा उठ जाएगा. उन्होंने कहा कि महंगाई एक ऐसे समूह को लक्षित करे, जिसमें उपभोक्ता के इस्तेमाल वाली चीजें शामिल हों. यह महंगाई के बारे में उपभोक्ताओं की धारणा और अंततः मुद्रास्फीति की उम्मीदों को प्रभावित करता है.
आरबीआई के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने कहा कि जब मैं गवर्नर बना था, उस समय भी हम पीपीआई (उत्पादक मूल्य सूचकांक) को लक्षित कर रहे थे. लेकिन, इसका एक औसत उपभोक्ता के सामने पेश होने वाली चुनौतियों से कोई लेना-देना नहीं होता है. उन्होंने कहा कि ऐसे में जब आरबीआई कहता है कि महंगाई कम है, तो पीपीआई पर नजर डालें. अगर उपभोक्ता कुछ अलग तरह की चुनौतियों का सामना कर रहे हैं, तो वे वास्तव में यह नहीं मानते कि महंगाई कम हुई है.
अमेरिका स्थित शिकॉगो बूथ में वित्त के प्रोफेसर रघुराम राजन ने कहा कि अगर आप महंगाई के कुछ सबसे अहम हिस्सों को छोड़ देते हैं और उसे नियंत्रण में बताते हैं. खाद्य कीमतें या महंगाई की ‘टोकरी’ में नहीं रखे गए किसी दूसरे खंड की कीमतें आसमान छू रही हैं, तो आप जानते हैं कि लोगों को रिजर्व बैंक पर बहुत भरोसा नहीं होगा. उन्होंने कहा कि आप अल्पावधि में खाद्य कीमतों को प्रभावित नहीं कर सकते. वहीं, अगर खाद्य कीमतें लंबे समय तक अधिक रहती हैं, तो इसका मतलब है कि मांग के सापेक्ष खाद्य उत्पादन पर कुछ बंदिशें हैं. इसका अर्थ है कि इसे संतुलित करने के लिए आपको दूसरे क्षेत्रों में महंगाई को कम करना होगा. उन्होंने कहा कि खाद्य कीमतों को कम करने के लिए आपको उपाय करने होंगे.
समाचार एजेंसी पीटीआई से बातचीत के दौरान रघुराम राजन मानक ब्याज दरें तय करते समय खाद्य महंगई को कैलकुलेशन से बाहर रखने के बारे में आर्थिक समीक्षा 2023-24 में आए सुझावों पर एक सवाल का जवाब दे रहे थे. आर्थिक समीक्षा 2023-24 में मुख्य आर्थिक सलाहकार वी अनंत नागेश्वरन ने नीतिगत दर निर्धारण की प्रक्रिया से खाद्य महंगाई को बाहर रखने की वकालत की थी. उन्होंने कहा था कि मौद्रिक नीति का खाद्य वस्तुओं की कीमतों पर कोई असर नहीं पड़ता है क्योंकि कीमतें आपूर्ति पक्ष के दबावों से तय होती हैं.