कोरोना संक्रमण के दौर में हर कोई परेशान है. सभी प्रभु से इसे दूर करने की प्रार्थना कर रहे हैं। इसी बीच साल में दो चंद्र ग्रहण और दो सूर्य ग्रहण लगने से लोगों में इस प्रभाव को लेकर असमंजस की स्थिति बन गई है. ग्रहण काल का असर देश में न होने के बावजूद राशियों पर प्रभाव की बात कही जा रही है. विज्ञान से इतर ज्योतिष विज्ञान की बात करें तो लोगों को सावधान रहकर ग्रहण काल की व्याधियों को दूर करने का उपाय करना चाहिए। विज्ञान इसे खगोलीय घटना बता रहा है लेकिन ज्योतिष के जानकार दिखाई न होने की दशा में सूतक काल न होने की बात कह रहे हें वहीं राशियों प्रभाव पड़ने और उपाय के बारे में बता रहे हैं।
भारतीय सनातन परंपरा का सारथी है ज्योतिष विज्ञान
राष्ट्रीय संस्कृत संस्थान के आचार्य डा.पवन दीक्षित ने बताया कि विज्ञान और ज्योतिष विज्ञान की तुलना नहीं की जा सकती। विज्ञान ग्रहण को खगोलीय गणना मानता है तो सब मानने लगते हैं, लेकिन ज्योतिष विज्ञान को हल्के में लेना अनुचित है। दोनों की गणना का आधार अलग-अलग है। विज्ञान से पहले ज्योतिष विज्ञान रहा है। भारतीय सनातन परंपरा का सारथी रहा है ज्योतिष विज्ञान। विकास के डिजिटल युग में इसकी मान्यता बढ़ी है।
26 मई को लगेगा पहला चंद्र ग्रहण : बैशाख मास की शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा 26 मई को उपछाया चंद्र ग्रहण से ग्रहण की शुरुआत होगी।
10 जून को लगेगा सूर्य ग्रहण : 10 जून दिन गुरुवार को दोपहर 1:43 बजे से शाम 6:41 बजे तक ग्रहण काल रहेगा।यह ग्रहण भारत में कहीं नहीं दिखेगा। ऐसे में आपको कोई उपाय करने की जरूरत नहीं है। तक लगेगा किन्तु भारत में कहीं नहीं है।
19 नवंबर को चंद्र ग्रहण : 19 नवंबर को साल का तीसरा ग्रहण लगेगा जो देश के असम और अरुणाचल प्रदेश व पूर्वाेत्तर भाग में समापन के दौरान दिखेगा। शाम 5:38 बजे से शाम 6: 31 बजे के बीच नजर आएगा। सूतक काल नहीं होगा।
चार दिसंबर को सूर्य ग्रहण : इस साल का अंतिम ग्रहण चार दिसंबर को लगेगा। दोपहर 2:43 बजे से शाम 5:41 बजे के बीच ग्रहण काल होने की संभावना है। यह सूर्य ग्रहण भारत में नहीं दिखेगा। इसीलिए कोई उपाय करने जरूरत नहीं है, फिर भी ग्रहण काल के कुछ नियमों का पालन कर मानसिक शांति प्राप्त कर सकते है।
इन सामान्य बातों का रखें ध्यान
- जब ग्रहण शुरू हो रहा हों, तो उस समय से पहले ही स्नान करके साधना करनी चाहिए।
- मोक्ष के उपरांत स्नान करके दान करना चाहिए।
- सूर्यग्रहण काल में भगवान सूर्य की और चंद्रग्रहण चंद्रदेव की उपासना श्रेयस्कर मानी गई है।
- पका हुआ अन्न, कटी हुई सब्जी ग्रहणकाल में दूषित हों जाते हैं, उन्हें नहीं रखना चाहिए ।
- तेल, घी, दूध, पनीर, आचार, चटनी व मुरब्बा सहित अन्य खाद्य पदार्थ में तुलसी की पत्ती रखनी चाहिए।
- ग्रहणकाल में मूर्ति स्पर्श नही करना चाहिए।
- बुजुर्ग, रोगी, बालक एवं गर्भवती को जरूरी हो तो दवा देनी चाहिए। गर्भवती अपने घर को गेरू से गोठ सकती हैं। गर्भवती को पेट को भी गेरू से गोठना चाहिए।
आचार्य शक्तिधर त्रिपाठी ने बताया कि बैशाख मास की शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा 26 मई को उपछाया चंद्र ग्रहण से ग्रहण की शुरुआत होगी। उपछाया की वजह से सूतक का मान नहीं होगा। दोपहर 2:18 बजे से शुरू होकर पांच घंटे बाद शाम 7:19 बजे समाप्त होगा। यह उपछाया चंद्र ग्रहण केवल पश्चिम बंगाल, बंगाल की खाड़ी और उत्तरपूर्व के कुछ हिस्सों से ही छाया के रूप में नजर आएगा। इसे खग्रास चंद्र ग्रहण भी कहते हैं। आचार्य एसएस नागपाल ने बताया कि उप छाया चंद्र ग्रहण वृश्चिक राशि और अनुराधा नक्षत्र में लगने जा रहा है. ग्रहण के दौरान वृश्चिक राशि को मानसिक तनाव, भ्रम और अज्ञात भय हो सकता है. आचार्य आनंद दुबे ने बताया कि विज्ञान से दूर ज्योतिष में ग्रहण काल, समय और लक्षत्र की गणना की जाती है जो विज्ञान से कम नहीं है। इन ग्रहणों में नियम पालन की बाध्यता नहीं है लेकिन उपाय करने में कोई गुरेज भी नहीं है। जो जातक करना चाहे वह कर सकते हैं। ब्रहमांड तो एक ही है।