बीते एक दशक में भारत और अमेरिका के बीच संबंधों में मजबूती आई है। लेकिन अब यही मजबूती कहीं न कहीं भारत की टेंशन भी बन गई है। हाल ही में अमेरिकी रक्षा मंत्री लॉयड ऑस्टिन ने भारत की यात्रा की। इस दौरान उनकी अपने समकक्ष रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह समेत एनएसए अजीत डोभाल और पीएम नरेंद्र मोदी से कई मुद्दों पर बातचीत हुई। ये बातचीत रणनीतिक दृष्टि से काफी अहम थी। लेकिन जाते-जाते वो भारत को परेशानी में भी उलझा गए। इसकी वजह बनी है रूस के साथ एस-400 मिसाइल डिफेंस सिस्टम पर हुआ करार। दरअसल, ये टेंशन बढ़ाने का काम ऑस्टिन के उस बयान ने किया है जिसमें उन्होंने साफतौर पर कहा है कि अमेरिका ने अपने सभी सहयोगी देशों से रूसी तकनीक न खरीदने को कहा है।लेकिन जब उनसे ये सवाल किया गया कि क्या अमेरिका इस सौदे को लेकर तुर्की की तरह भारत पर भी प्रतिबंध लगा सकता है तो उन्होंने कहा कि भारत को अभी तक इसकी सप्लाई नहीं हुई है, इसलिए भारत पर प्रतिबंध लगाने का सवाल ही नहीं उठता है।
भारत और रूस का सहयोग से नाराज यूएस
दरअसल, अमेरिका चाहता है कि भारत इस सौदे को रद कर दे। वो नहीं चाहता है कि भारत और रूस के बीच बेहतर संबंध हों और इस तरह का कोई भी करार हो। इसकी वजह अमेरिका और रूस के बीच चल रहा तनाव है जो शीतयुद्ध की ही तरह आगे बढ़ रहा है। इसकी एक बानगी पिछले दिनों अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन के बयानों में भी दिखाई दी थी। वहीं भारत की बात करें तो रणनीतिक दृष्टि से भारत और रूस वर्षों से सहयोगी रहे हैं। सुखोई जेट की बात हो या ब्रह्मोस मिसाइल की या दूसरी रक्षा प्रणालियों की, इनमें रूस का सहयोग भारत को मिला है या रूस के साथ इन्हें विकसित किया गया है। ऐसे में भारत यदि इस सौदे को अमेरिका के दबाव में रद करता है तो ये रूस को सहयोगी के तौर पर अपने से दूर करना होगा। लेकिन वहीं यदि ऐसा नहीं करते हैं तो ये अमेरिका की नाराजगी को बढ़ाने का भी काम कर सकता है। आपको यहां पर ये भी बता दें कि पूर्व में भारत एस-400 की खरीद से पीछे न हटने की अपनी प्रतिबद्धता को दोहरा चुका है।
तुर्की पर लगा है प्रतिबंध
ये सवाल और जवाब इसलिए बेहद जरूरी है क्योंकि अमेरिका ने तुर्की पर इसको देखते हुए ही प्रतिबंध भी लगाया हुआ है। आपको बता दें कि ऐसे ही एक करार पर अमेरिका तुर्की से भी नाराज है और उस पर लगातार सौदा रद करने को लेकर दबाव भी बना रहा है। तुर्की ने वर्ष 2017 में ये सौदा रूस के साथ किया था। रूस और भारत के बीच एस-400 के 40 हजार करोड़ के सौदे का करार वर्ष 2016 में ब्रिक्स सम्मेलन के दौरान हुआ था, जिसपर वर्ष 2018 में औपचारिक रूस से मुहर लगाई गई थी। समझौते के तहत रूस को पिछले वर्ष तक इसकी सप्लाई शुरू कर देनी थी, लेकिन अड़चनों की वजह से ऐसा नहीं हो सका। वहीं सऊदी अरब ने इसको लेकर सौदा वर्ष 2009 में किया था। हालांकि एक दशक के बाद इस तरह की खबर आई थी कि इसको कोई अंतिम रूप नहीं दिया जा सका। इसी तरह से चीन ने इस मिसाइल सिस्टम को लेकर वर्ष 2014 में सौदा किया था। बेलारूस ने 2011 में ये सौदा किया था। नवंबर 2015 में रूस द्वारा इस सिस्टम को सीरिया में लगाने की भी खबर आई थी।
आधुनिक सिस्टम है एस-400
आपको यहां पर ये भी बता दें कि रूस की बनाई एस-400 मिसाइल डिफेंस सिस्टम दुनिया की आधुनिक तकनीक में से एक है। ये सिस्टम हवा में 400 किमी के दायरे में आने वाली दुश्मन की किसी भी मिसाइल को ध्वस्त करने में सक्षम है। इसकी सबसे बड़ी खासियत है कि यदि दुश्मन की तरफ से तीन दिशाओं से भी मिसाइल दागी गई हो तो भी ये सिस्टम इन सभी को नष्ट कर सकता है। ये रूस की एस-300 मिसाइल डिफेंस सिस्टम अल्माज का अपग्रेड वर्जन है। चीन ने भी इसको लेकर रूस के साथ वर्ष 2014 में करार किया था। अब तक केवल रूस चीन को ही इसकी सप्लाई कर सका है। इसके अलावा सऊदी अरब और बेलारूस ने भी इसको लेकर रूस से करार किया हुआ है। मिस्र और ईरान भी इस सिस्टम को लेकर अपनी दिलचस्पी दिखा चुका है। वहीं दक्षिण कोरिया अल्माज के साथ मिलकर एक डिफेंस सिस्टम तैयार करने में जुटा है।
कैसा रहा ऑस्टिन का दौरा
इस पूरे दौरे को ऑब्जरवर रिसर्च फाउंडेशन के प्रोफेसर हर्ष वी पंत काफी अहम मानते हैं। हालांकि उनका कहना है कि भारत अमेरिका एलाइंस पार्टनर नहीं है जैसे जापान और दक्षिण कोरिया है। बल्कि भारत एक स्ट्रेटेजिक पार्टनर है। ऑस्टिन का यहां आना भारत की इंडो-पेसेफिक क्षेत्र में अहमियत को दर्शाता है। इसमें अमेरिका ने संकेत दिया है भारत को अगले पांच वर्षों में यहां की सुरक्षा के लिए बनाई जाने वाली नीतियों में अहम भागीदारी निभानी होगी जो काफी अहम है। हालांकि एस-400 करार को लेकर दोनों देशेां के बीच टकराव जरूर है। अमेरिका की तरफ से एक संकेत ये भी दिखाई दिया है कि वो डिफेंस सेक्टर में भारत की जरूरतों को ध्यान में रखते हुए डिफेंस मैन्युफैक्चरिंग के लिए मदद कर सकता है।