कृषि विधेयक से मंडियां हो जाएंगी खत्म

               -कॉम्रेड मिलींद जानराव
    मोदी सरकार ने बीते दिनों संसद के दोनों सदनों से कृषि सुधारों को लेकर तीन अहम विधेयक पास कराए. ये तीन विधेयक हैं

कृषक उत्पाद व्यापार एवं वाणिज्य (संवर्धन एवं सरलीकरण) विधेयक 2020, कृषक (सशक्तिकरण एवं संरक्षण) कीमत आश्वासन समझौता

और कृषि सेवा पर करार विधेयक-2020 और आवश्यक वस्तु (संशोधन) विधेयक 2020   कृषि विधेयकों का सबसे ज्यादा विरोध पंजाब और हरियाणा में हो रहा है.

भाजपा की सहयोगी पार्टी अकाली दल खुद इन विधेयकों का विरोध कर रही है. शिअद का कहना है कि ये विधेयक कानून बने तो वह एनडीए गठबंधन से अलग हो जाएगी

. दूसरी ओर कांग्रेस इस बिल के विरोध में पूरी मजबूती से खड़ी है. कृषि विधेयकों को लेकर कांग्रेस का मोदी सरकार पर सबसे बड़ा आरोप यह है

कि वह मंडी व्यवस्था खत्म कर किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य से वंचित करना चाहती है.

कांग्रेस के अलावा ​वाम दल, तृणमूल कांग्रेस, समाजवादी पार्टी और आम आदमी पार्टी की ओर से कृषि विधेयकों का सर्वाधिक विरोध हो रहा है.

ऐसा नहीं है कि पूरे देश के किसान कृषि विधेयकों का विरोध कर रहे हैं. बल्कि जिन राज्यों के किसान इन विधेयकों के कानूनी शक्ल लेने के बाद सर्वाधिक प्रभावित होने वाले हैं,

वे जरूर विरोध कर रहे हैं. इनमें पंजाब और हरियाणा राज्य के किसान शामिल हैं. दरअसल, केंद्र और राज्य सरकारें

किसानों से निर्धारित न्यूनतम समर्थन मूल्य (Minimum Support Price) की दर पर गेहूं और चावल सबसे ज्यादा खरीदती हैं

पंजाब-हरियाणा में गेहूं-चावल खूब होता है. खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण विभाग की रिपोर्ट के अनुसार पिछले

कुछ वर्षों में पंजाब-हरियाणा का 80 फीसदी धान और करीब 70 फीसदी तक गेहूं सरकार ने खरीदा है

ऐसे में कृषि विधेयकों के कानून बनने के बाद इन दो राज्यों के किसानों को उनके उत्पाद की खरीद न्यूनतम समर्थन मूल्य पर न होने का डर सता रहा है.

   उन्हें डर है कि अगर सरकार उनका अनाज नहीं खरीदेगी तो फिर वह किसे अपने अनाज बेचेंगे? अभी तो सरकार अनाज लेकर उसे निर्यात कर देती है

या फिर और जगहों पर वितरित कर देती है. लेकिन बाद में किसान परेशान हो जाएंगे. उन्हें ये भी डर है

कि प्राइवेट कंपनियां या बिजनेसमेन एमएसपी की जगह मनमाने दामों पर उनके उत्पाद की खरीद कर सकती हैं.

क्योंकि किसानों के पास भंडारण की उचित व्यवस्था नहीं है तो उन्हें अपना अन्न मजबूर होकर कम दाम पर भी बेचना पड़ सकता है.

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