@आशीष सागर दीक्षित, बाँदा / छतरपुर
“जल संकट का स्थायी हल पारंपरिक जल स्रोतों और जल संचयन मे है। हमारी चन्देल युगीन सभ्यता एवं जल संग्रहण तकनीकी इसका उदाहरण है। केंद्र और राज्य सरकारों मे बैठे अफसरों ने पन्ना टाइगर रिजर्व के 46 लाख पेड़ और जंगल उजाड़कर सरकार की हिमायती बनकर जनता को पानीदार बनाने का झूठा सब्जबाग दिखाया है।” : अमित भटनागर
- प्रस्तावित परियोजना बांध स्थल पर चिता बनाकर लेटे ग्रामीण और प्रधानमंत्री से पूछा: त्याग के बदले विस्थापितों से बर्बरता क्यों की जाती है ?
छतरपुर / खजुराहो। आज पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी जी के 100 जन्म दिवस पर देशभर मे जहां सुशासन दिवस के उपलक्ष्य पर सरकारी विभागों मे कार्यक्रम आयोजित किये गए है। वहीं देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र दामोदर दास मोदी जी द्वारा केन-बेतवा नदी जोड़ परियोजना के शिलान्यास बुंदेलखंड के पर्यटन स्थल खजुराहो मे किया गया है। एक तरफ देशभर का पत्रकार बिना ग्राउंड पर गए सरकारी पोस्टर और विज्ञापन पर इस परियोजना के गुणगान कर रहा है। वहीं इस केन बेतवा लिंक से नाराज स्थानीय आदिवास और ग्रामीणों ने आज बांध स्थल पर चिताओं मे लेटकर काला दिवस मनाया है।
संभव है प्रधानमंत्री जी के लकदक शिलान्यास फ़ोटो और खबरों के मध्य ये आदिवासियों की तस्वीर जगह न पा सकें। ब्रेकिंग तो हरगिज नही बनेगी लेकिन पन्ना टाइगर्स रिजर्व बफर जोन के अंदर बसे खाशकर वे 10 गांव जो इस परियोजना के डूब क्षेत्र मे आते है उन्होंने आज बिजावर के आंदोलन कर्मी एवं सामाजिक कार्यकर्ता अमित भटनागर के नेतृत्व में प्रभावित किसानों के साथ दौढन बांध निर्माण स्थल पर बड़ी संख्या में एकत्र होकर अपना प्रतिरोध दर्ज कराया है। वहीं लोकल इंटेलिजेंस और पुलिस की चाक चौबंद व्यवस्था पर चोट करते हुए आज सांकेतिक चिता बनाकर उसमे आग लगाई और जलती चिताओं पर लेटकर प्रदर्शन किया है।
परियोजना से जुड़ी पुरानी खबर का लिंक नीचे है –
गौरतलब है कि बांध निर्माण स्थल के ग्रामीणों का कहना है कि इस परियोजना ने उनके जीवन,माटी और आजीविका को नष्ट कर दिया है। उन्होंने परियोजना के लिए अपने पीढ़ियों के खेत,घर,और सांस्कृतिक पहचान का त्याग किया है लेकिन बदले में उन्हें फर्जी ग्राम सभाओं, सरकारी लाठीचार्ज और मुआवजे पर राजस्व कर्मचारियों के भ्रष्टाचार का सामना करना पड़ रहा है।
ग्रामीणों का दर्द :-
वे समुदाय मे आज एकत्र होकर कहते है कि हमने अपना अस्तित्व और सब कुछ खो दिया बावजूद इसके हमारे साथ अन्याय क्यों किया गया ?
बतलाते चले कि बांध स्थल से समग्र परियोजना डूब क्षेत्र तक कुल 22 गाँवों के आदिवासी और ग्रामीण शामिल है जिनकी खेतिहर जमीन, घर,माटी और आजीविका इस परियोजना के कारण छीन ली गई है। सरकार का दावा है वो केन नदी पर लिंक कैनाल नहर बनाकर बुंदेलखंड को खुशहाल बनाने जा रही है।
किसानों ने प्रधानमंत्री से किया सवाल :– आज जलती चिताओं पर लेटे आदिवासियों ने देश के प्रधानमंत्री जी से इस परियोजना को लेकर कुछ सवाल किए है।
- उन्होंने पूछा है कि हमे विस्थापन के बाद राज्य सरकार से सहानुभूति और सम्मान मिलना चाहिए था लेकिन हमे फर्जी ग्राम सभाओं और लाठीचार्ज का सामना करना पड़ा। हलात इतने खराब है कि निर्वाचित सरकार मे प्रधानमंत्री के सभा स्थल तक जाकर किसान, आदिवासी अपने मन की बात तक नही पूछ सकता है।
- किसानों ने सवाल किया कि विस्थापन वाले गांवों मे पहले फर्जी पब्लिक जनसुनवाई की गई फिर कागज़ी फर्जी ग्राम सभाओं का सहारा क्यो लिया गया है ?
आदिवासियों ने कहा कि ‘पंचायती राज अधिनियम’ और ‘भूमि अधिग्रहण अधिनियम’ के तहत ग्रामीणों की सहमति आवश्यक थी किंतु पटवारी ने फर्जी ग्राम सभाओं के माध्यम से सहमति का झूठा दावा एसडीएम से किया है। असमानता से मुआवजा मिला और किसी की भूमि कहीं और चढ़ गई है। राजस्व कर्मियों ने गांव की चकबंदी जितना भी नियम इतनी बड़ी सिंचाई जल परियोजना पर अनुपालन नही किया। - प्रदर्शन कर रहे किसान सवाल किए है कि उनका आजीविका परक पुनर्वास और मुआवजा वितरण क्यों नहीं किया गया है ? शांतिपूर्ण प्रदर्शन करने पर हमें रात में लाठीचार्ज का सामना करना पड़ा। क्या यही लोकतंत्र है ?
- डीपीआर और सीईसी रिपोर्ट मुताबिक प्रोजेक्ट पर अनुमानित 46 लाख पेड़ और 22 गाँव उजाड़े जा रहे है।
आज धरना स्थल पर मौजूद सामाजिक कार्यकर्ता अमित भटनागर ने कहा कि यह परियोजना न केवल 46 लाख पेड़ों की काटकर पन्ना टाइगर रिजर्व के कोर क्षेत्र को नष्ट करेगी बल्कि डूब क्षेत्र के 22 गाँवों के आदिवासी और ग्रामीण समुदायों को उनकी पहचान और अधिकारों से वंचित करने जा रही है। दिल्ली और शहरी पत्रकारों को जंगल के बीच आकर स्थिति देखनी चाहिए।
उन्होंने कहा कि यह परियोजना विकास नहीं बल्कि जैवविविधता के विनाश का प्रतीक बन चुकी है। पीएम मोदी जी ने इस विवादित परियोजना का आज शुभारंभ कर श्रद्धेय अटल जी के सिद्धांतों को भी अनदेखा कर रहें है। सरकार की पार्टी के माननीय चाटुकारिता मे सच बोलना ही नही चाहते। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री जैसे गरिमामयी पद की गरिमा को ठेस पहुंचता है जंगल की बांध परियोजना पर उसके मूल निवासी की ही बात न सुनी जाएगी।
पर्यावरणीय और विधिक निर्देशों का उल्लंघन :-
आदिवासियों का नेतृत्व कर रहे अमित मानते है कि इस परियोजना मे सुप्रीम कोर्ट और NGT के सुझावों की अनदेखी की गई है। उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से सवाल किया कि जब परियोजना सुप्रीम कोर्ट और राष्ट्रीय हरित अधिकरण (NGT) में विचाराधीन है, तब निर्णय आए बिना जनता के 44 हजार करोड़ रुपया को बर्बाद करने की इतनी जल्दबाजी आखिर किस राजनीतिक लाभ को साधने की मंशा है ?
बकौल अमित परियोजना के लिए सुप्रीम कोर्ट ने केंद्रीय सशक्त समिति (CEC) का गठन किया था। उसकी 175 पेज की रिपोर्ट इसके पर्यावरण दुष्प्रभाव को उजागर करती है जिसकी सौ फीसदी अनदेखी हो रही है। क्या केंद्रीय सशक्त समिति (CEC) झूठ बोल रही है, मीडिया को यह सवाल करना चाहिए।
झूठे जलविज्ञान के आंकड़े :-
सामाजिक कार्यकर्ता अमित भटनागर ने केंद्रीय सशक्त समिति (CEC) की रिपोर्ट को आधार बताते हुये बताया कि परियोजना के तहत यह दावा किया गया कि केन नदी में पानी अर्थात जल अधिक है, लेकिन यह दावा झूठा और अप्रमाणिक है। साल के 6 माह जंगल तक घुटनों पर बहने वाली पहाड़ी नदी केन पहले ही मौरम माफियाओं के जंगलराज से हलकान है। सरकार को पहले यह अवैध काम रोकने को तत्पर होना चाहिए।
बुंदेलखंड के जल संकट का समाधान झूठा दावा :-
यह परियोजना बुंदेलखंड के पानी को अन्य क्षेत्रों में निर्यात करेगी और यहाँ की जल समस्याएं जस की तस बनी रहेंगी। उन्होंने इसके संदर्भ मे ललितपुर का उदाहरण दिया जो एशिया के सबसे ज्यादा बांध वाला जिला है। लेकिन हर साल जल संकट देखता है। हर नदी नैसर्गिक रूप से एकदूसरे से लिंक व जुड़ी है यह मूर्खता है कि केन को बेतवा से जोड़ा जा रहा है और यह हजारों करोड़ रुपया अन्तः निष्फल साबित होगा। उन्होंने कहा कि बुंदेलखंड की जल संकट का स्थायी समाधान पारंपरिक जल स्रोतो,चन्देल कालीन वाटर चैनल,तालाबो की संरचना बचाने पर खोजने की नसीहत देते हुए आज इस केन बेतवा लिंक का विरोध चिताओं पर लेटकर नारेबाजी करते हुए किया है।
प्रदर्शनकारियों की मांगें : परियोजना पर रोक :-
जब तक सुप्रीम कोर्ट और NGT का अंतिम निर्णय नहीं आता, परियोजना का काम रोका जाए।
- फर्जी ग्राम सभाओं की जांच स्वतंत्र एजेंसी से ग्राम सभाओं और सहमति के झूठे दावों की जांच कराई जाए।
- पुनर्वास और मुआवजा- सभी प्रभावित परिवारों को उचित मुआवजा और पुनर्वास दिया जाए।
- मुआवजे में हुई अनियमितताओं के दोषियों पर कार्रवाई की जाए।
- पर्यावरणीय और सामाजिक समीक्षा हो।
- केंद्रीय सशक्त समिति / सेंट्रल इम्पावर्ड कमेटी (CEC) की रिपोर्ट के आधार पर परियोजना की पुनः समीक्षा की जाए।
ग्रामीणों की चेतावनी : विरोध जारी रहेगा –
प्रभावितों ने स्पष्ट किया कि यदि उनकी समस्याओं का समाधान नहीं किया गया, तो उनका विरोध और तेज होगा। परियोजना की वास्तविकता और इसके विनाशकारी प्रभावों को देशभर में उजागर किया जाएगा। प्रदर्शनकारीयों का कहना था कि हम शांतिपूर्ण आंदोलन करेंगे, लेकिन अपने अधिकारों और पर्यावरण की रक्षा के लिए लड़ाई जारी रखेंगे।
परियोजना प्रभावित दौढन गाँव के गौरीशंकर यादव ने आक्रोश व्यक्त करते हुये कहा कि यह लड़ाई हम सबके अधिकारों ही नहीं है बल्कि आने वाली पीड़ियों के भविष्य बचाने की भी है और यह जारी रहेगी जैसे विगत 20 साल से चल रही है।