धार्मिक स्थल : अतिक्रमण का सिलसिला


आचार्य पवन त्रिपाठी
वस्तुत: जब हम कुरान की शिक्षा पर दृष्टि डालते हैं, तो महसूस होता है कि कुरान में विचार या सिद्धांत की अपेक्षा धार्मिंक कर्त्तव्य पर अधिक जोर दिया गया है।


धार्मिंक कर्त्तव्य पांच प्रकार के माने गए हैं। उनमें मत का उच्चारण, नमाज, जकात  (खैरात), उपवास  (रमजान का महीना) और हज करने का समावेश है। इस तरह इस्लाम की धार्मिंक श्रद्धा संक्षेप में और स्पष्ट है। इसकी अभिव्यक्ति केवल एक वाक्य में की जा सकती है-‘ला इलाह इल्लल्लाह मुहम्मद रसूल ल्लाहीÓ अर्थात अल्लाह के सिवाय कोई दूसरा ईश्वर नहीं है तथा मुहम्मद साहेब इसके देवदूत हैं। कालांतर में इस आदर्श धार्मिंक संदेश ने कट्टरता का रूप धारण कर लिया। इस्लाम को मानने वालों ने अन्य धर्मो का आदर करना छोड़ दिया और अन्य धर्मो के धार्मिंक स्थलों को ध्वस्त कर वहां मस्जिद बनाने का सिलसिला शुरू कर दिया। ऐसा करने वाले यह समझने लगे कि दूसरों का पूजा स्थल तोडऩे से उन्हें जन्नत मिलेगी। भारत सहित दुनिया के अनेक देश इनके तोड़ू अभियान से त्रस्त हो गए। हजारों धर्म स्थल इनके शिकार हो गए। इनकी इस नीति का विरोध आज भी जारी है।
आइए, पूजा स्थल विध्वंस करने के मामलों पर नजर डालें। पूरे विश्व में सेक्युलरिज्म के लिए सबसे प्रख्यात देशों में टर्की रहा है। इस्लामी खिलाफत का सबसे बड़ा केंद्र टर्की हुआ करता था। ईसाइयों और इस्लामिक शक्तियों के बीच सबसे बड़ा टकराव का बिंदु स्थान भी टर्की रहा है। टर्की में कांस्टिटिनोपल साम्राज्य के दिनों में ईसवीं सन 537 में हेगिया सुफिया नाम के एक चर्च की संस्थापना की गई। हेगिया सुफिया मूलत: लैटिन का शब्द है। लैटिन के इस शब्द का अर्थ होता है अंग्रेजी में होली विज्डम, जिसे हिंदी में कहा जा सकता है पवित्र ज्ञान। इस स्थान को ईसाइयों के इतिहास में अत्यंत महत्त्व प्राप्त है। जब इस्लाम की संस्थापना हुई और इस्लाम जब ईसाइयत पर हावी हुआ और रोमन बैजेंटाइन  एंपायर जब ढहा तो 1453 में इस हेगिया सुफिया चर्च को ओटोमन मस्जिद के रूप में परिवर्तित कर दिया गया।
इस्लाम का इतिहास इस बात का गवाह है कि जहां पर भी इस्लामी शासक, लुटेरे गए वहां पर उन्होंने न केवल विजित किए गए क्षेत्रों को लूटा, उनकी महिलाओं के साथ बलात्कार किया, लोगों को गुलाम बनाया, बल्कि वहां के धार्मिंक स्थलों को तोड़ा भी। जैसे भारत में लगभग 30 हजार ऐसे धर्मस्थल हैं, हिंदुओं, बौद्धों और जैनों के जिनका विध्वंस इस्लामी आक्रांताओं ने किया, जिनमें में काशी, मथुरा और अयोध्या हिंदुओं के तीन पवित्र स्थल, सोमनाथ का मंदिर, हर कोई जानता है कि उसे  किस तरह से महमूद गजनी ने लूटा और ध्वस्त किया। इसी तरह से बौद्धों का जो सबसे बड़ा केंद्र हुआ करता था, जहां पर महात्मा बुद्ध की समाधि है कुशीनगर में, वहां भी बख्तियार खिलजी ने महात्मा बुद्ध की समाधि को तोड़ दिया था और वहां पर इस्लामी कब्रिस्तान बना दिया गया था। डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर ने 1956 में उस कुशीनगर में महात्मा बुद्ध की समाधि को तत्कालीन सरकार से कहकर फिर से वहां पर बौद्ध स्मारक का पुनर्निर्माण कराया। जो पंडित जवाहरलाल नेहरू सोमनाथ मंदिर का विरोध किया करते थे कि इसका निर्माण सरकार के धन से नहीं होना चाहिए, कालान्तर में जब बौद्धों की बात आई तो सरकारी खर्च से कुशीनगर में डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर की अपील पर उन्होंने बौद्ध समाधि  को पुनर्निर्मिंत कराने का कार्य किया।
इसी तरह की सबसे बड़ी ऐतिहासिक घटना जो यूरोप में मानी जाती है, वह हेगिया सोफिया के चर्च का ध्वंस। जब वहां पर सेक्युलरिज्म संस्थापित हुूआ, अता तुर्क का जब वहां शासन आया, उसे कमाल पासा भी कहा गया, तो कमाल पासा ने खलीफा की गद्दी को ध्वस्त कर दिया। वहां पर सेक्युलरिज्म भी स्थापित किया और 1935 में हेगिया सूफिया नाम की चर्च, जो कालान्तर में वहां पर ऑटोमन मॉस बन गई थी, मस्जिद बन गई थी। उसे राष्ट्रीय स्मारक घोषित कर दिया और 1935 से लेकर 2020 तक यह राष्ट्रीय स्मारक के रूप में लोगों के समक्ष रहा और राष्ट्रीय स्मारक के रूप में ही उसको याद भी किया गया। 2020 में यानी अभी, उस मस्जिद यानी उस राष्ट्रीय स्मारक को फिर से मस्जिद बनाने का निर्णय टर्की के वर्तमान शासकों ने ले लिया और इसे वक्फ की संपत्ति घोषित कर दिया गया। यूनेस्को का जो राष्ट्रीय स्मारक था यानी जिस किसी स्मारक को यूनेस्को का दरजा मिल जाता है, उसकी वास्तु में परिवर्तन नहीं किया जाता। लेकिन इस्लाम के नियमों का इससे क्या लेना-देना।
इसलिए आज फिर से एक बार सेक्युलरिज्म टर्की से समाप्त है और टर्की में उस स्थान पर अब मस्जिद का निर्माण कर दिया गया, तमाम ईसाई देशों के विरोध के बावजूद। यहां तक कि रोमन कैथलिक चर्च के प्रमुख पोप ने भी इस मामले का विरोध किया है। फिर भी इन सारे विरोधों को नजरअंदाज करके एक बार फिर हेगिया सोफिया को मस्जिद के रूप में परिवर्तित कर दिया गया है। यह इस बात का प्रमाण है कि आज जैसे सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय देने के बाद रामजन्म भूमि स्थान पर जिसको 498 वर्ष पहले, बाबर के एक तथाकथित सेनापति मीर बाकी ने प्रभु रामचन्द्र जी के मंदिर को ध्वस्त करके वहां पर मस्जिद का निर्माण कराया था। 480 वर्षो तक विविध रूप से रामजन्म मंदिर के निर्माण को रोका गया। कांग्रेस के शासनकाल में हरसंभव बाधाएं उत्पन्न की गई। आज जब वहां प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की सरकार शासन में है, तो सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय के संवैधानिक रूप से वहां पर फिर से 5 अगस्त, 2020 को मंदिर के पुनर्निमाण के लिए शिलान्यास किया गया।
आप कल्पना कीजिए, आज से 100-200 वर्ष बाद यदि इस्लामी शासन या इस्लाम बहुल हो गया भारत तो फिर ये लोग उस राममंदिर को तोड़कर क्या मस्जिद नहीं बनाएंगे? कांग्रेस तो पहले ही 7 दिसम्बर, 1992 को भारत की संसद के समक्ष संकल्प ले चुकी थी कि जहां पर बाबरी ढांचा खड़ा था, वहां पर मस्जिद बनाई जाएगी। तो कांग्रेस के इस संकल्प को दोहराते हुए यदि भारत में किसी भी समय यहां पर हिंदू अल्पसंख्यक हो गए तो ना केवल राममंदिर, बल्कि अन्य सारे मंदिरों को भी तोड़कर अगर ये फिर से मस्जिद बना दें तो किसी को आश्चर्य नहीं होना चाहिए।
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