ग्रामीण क्षेत्रों मे स्वास्थ्य सेवाओं की सच्चाई और देहरी तक दवाई का सूरतेहाल... | Soochana Sansar

ग्रामीण क्षेत्रों मे स्वास्थ्य सेवाओं की सच्चाई और देहरी तक दवाई का सूरतेहाल…

@ आशीष सागर दीक्षित, बाँदा

बांदा। जिला मुख्यालय मे बड़ोखर खुर्द गांव स्थित किसान प्रेम सिंह की बगिया मे खबर लहरिया डिजीटल मीडिया समूह द्वारा आज 16 नवंबर 2024 को एक राउंडटेबल चर्चा का आयोजन किया गया था। इसमे ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य सेवाओं को आमजन तक उपलब्ध कराने के दौरान डिजिटलीकरण के प्रभाव पर चर्चा की गई है। बतलाते चले कि इस चर्चा का विषय था “देहरी पर दवाई की सच्चाई: डिजिटल युग में ग्रामीण स्वास्थ्य सेवा” परिचर्चा करते हुए अतिथि दीर्घा द्वारा यह बताया गया कि कैसे डिजिटल उपकरणों ने स्वास्थ्य सेवा की उपलब्धता और उसके जीवन प्रभाव को बदल दिया है। इसके साथ ही कार्मिकों के स्वास्थ्य सेवाओं उपकरणों के लिए प्रशिक्षण, उन्मुखीकरण कार्यक्रम व सुरक्षा और सामाजिक स्तर भी चुनौतियां सामने आई हैं।

उल्लेखनीय है कि इस कार्यक्रम में विभिन्न क्षेत्रों से आये महत्वपूर्ण वक्ताओं ने सहभागिता की है। जिसमें गांव की स्वास्थ्य रीढ़ हड्डी आशा कार्यकर्ता, स्वास्थ्य विशेषज्ञ डाक्टर और समाजिक कार्यकर्ता उपस्थित थे। आयोजन मे मुख्यधारा की पत्रकारिता से जुड़े शहर के प्रमुख समाचार पत्रों के पत्रकारों क्रमशः अरविंद गौतम (प्राइम न्यूज), मनोज कुमार (द क्विंट) / जेएमडी, ज़ीशान अख्तर (जनतंत्र टीवी), अनवर रजा रानू, भगत सिंह ( के-न्यूज़ ), स्वतंत्र पत्रकार यूसुफ खान, पूरन राय ( प्राइम टीवी ) एवं अन्य पत्रकारों ने भी राउंडटेबल चर्चा मे प्रतिभागिता की है। साथ ही संवाद मे अपने सवालों से मीडिया के नज़रिये को रोजमर्रा की खबरों के अनुभव से साझा किया गया है। इस संवाद की खुली चर्चा का मुख्य विषय देहरी तक दवाई की सच्चाई पंच लाइन के साथ ‘ग्रामीण स्वास्थ्य सेवाओं में डिजिटल युग की भूमिका था’।
खाशकर वे सभी मुद्दे जिनमें आम नागरिक की सेवा प्रदाता तक तक पहुंच, स्वास्थ्य कर्मचारियों को तकनीक प्रशिक्षण और सांस्कृतिक दृष्टिकोण शामिल हैं। अपनी दैनिक ज़िम्मेदारी मे वे इन समस्याओं को कैसे प्रभावित करते हैं।

राउंड टेबल परिचर्चा मे मुख्यतः यह मुद्दे उठते रहे –

डिजिटल उपकरणों के माध्यम से सशक्तिकरण : दोहरी तलवार : शबीना मुमताज

शबीना मुमताज़ (वरिष्ठ संदर्भ समूह सदस्य, मानवाधिकार इकाई) ने वक्तव्य देते हुए बांदा की आशा कार्यकर्ताओं के बारे में बताया कि किस तरह से उन्हें डिजिटल कौशल की कमी की वजह से चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। उन्होंने कहा, “जब ASHA के पास डिजिटल कौशल नहीं होता है तो उनका सशक्तिकरण पीछे रह जाता है; इसका प्रभाव उनके आत्म-सम्मान पर पड़ता है।” यह बयान इस बात पर ज़ोर देता है कि सही प्रशिक्षण और सहायता की उन्हें कितनी कहां आवश्यकता है। ताकि डिजिटल की मदद उन्हें सशक्त बनाया जा सके न कि उन्हें हाशिये पर धकेल दे।

डिजिटल विभाजन : सुरक्षा और सामाजिक चुनौतियां

सामाजिक कार्यकर्ता महेंद्र कुमार जो ‘मित्र बुंदेलखंड’ संस्था के जरिये नरैनी क्षेत्र मे किशोरावस्था के युवाओं के साथ काम करते है। इन्होंने टेक्नोलॉजी आने के बावजूद जारी सामाजिक समस्याओं पर चर्चा की। उन्होंने कहा, “हालाँकि हम डिजिटल युग में हैं, सामाजिक चुनौतियाँ बनी रहती हैं। जब ASHA कार्यकर्ता किसी से फ़ोन पर बात करती हैं, तो पुरुष अभद्र टिप्पणियाँ करते हैं।” इस टिप्पणी ने यह बताने की कोशिश की कि तकनीकी उन्नति के साथ-साथ सामाजिक पूर्वाग्रहों को भी दूर किया जाना चाहिए, ताकि महिलाओं को डिजिटल क्षेत्र में उत्पीड़न और शोषण का सामना न करना पड़े।

स्वास्थ्य सेवाओं में तकनीकी सुधार की भूमिका –

डॉ. अर्चना भारती, PHC डॉक्टर और काउंसलर, बांदा ने बताया कि डिजिटल उपकरणों जैसे टेली-मेडिसिन और स्वास्थ्य ट्रैकिंग के इस्तेमाल से सेवाओं के वितरण में महत्वपूर्ण सुधार हुआ है। उन्होंने कहा, “जब आप ASHA कार्यकर्ताओं को मोबाइल फोन देते हैं, तो उनका काम आसान हो जाता है। आधुनिकरण स्वास्थ्य विभाग के लिए आवश्यक है, और जैसे-जैसे ASHA डिजिटल होती जा रही है, स्वास्थ्य विभाग को भी उसके साथ कदम से कदम मिलाकर चलना चाहिए।”

डिजिटल प्रशिक्षण की कमियों को दूर करना –

हालांकि डिजिटल युग ने कुछ हद तक पहुंच को आसान किया है लेकिन इसके साथ ही प्रशिक्षण में कमियां भी देखी गई हैं, खासकर ग्रामीण स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं के लिए। आरती, एक ASHA कार्यकर्ता, ने कहा, “हालाँकि हमें डिजिटल रूप से प्रशिक्षित नहीं किया गया था, हमने ऑनलाइन काम करने के लिए खुद से सीखा।” उनकी आत्मनिर्भरता इस बात को उजागर करती है कि ASHA कार्यकर्ता कितनी मेहनत करती हैं, लेकिन डिजिटल टेक्नोलॉजी के लाभों को अधिकतम करने के लिए संरचित प्रशिक्षण की आवश्यकता भी है।

कुशल डिजिटल सहायता की आवश्यकता –

कई प्रतिभागियों ने यह मुद्दा उठाया कि डिजिटल डेटा संग्रह में मदद के लिए ASHA कार्यकर्ताओं को अधिक मजबूत सहायता प्रणालियाँ प्रदान की जानी चाहिए। “जब आपको डेटा और सर्वेक्षण की आवश्यकता होती है, तो स्वास्थ्य विभाग को कुशल डिजिटल कर्मचारियों को ASHA के साथ भेजना चाहिए। उन्हें ASHA को प्रशिक्षित करना चाहिए और साथ ही ऑन-ग्राउंड समर्थन प्रदान करना चाहिए,” शबीना जी ने सुझाव दिया।

मानव-केंद्रित डिजिटल दृष्टिकोण की आवश्यकता –

सामाजिक कार्यकर्ता महेंद्र कुमार ने सुझाव दिया कि ASHA कार्यकर्ताओं द्वारा इस्तेमाल किए जा रहे ऐप में एक “समस्या-समाधान” फीचर होना चाहिए। “वर्तमान में, ASHA ऐप में समाधान के लिए कोई स्थान नहीं है। हमें इसे सिर्फ डाटा रजिस्ट्रेशन और डिजिटल सीमाओं से बाहर निकालकर इसे मानवता और डिजिटल प्रक्रिया में जोड़ने की जरूरत है।” यह सुझाव इस बात को रेखांकित करता है कि तकनीकी विकास के बजाय हमें समाजिक समस्याओं के समाधान पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। वहीं ग्रामीणों को आज तक सुरक्षित यौन संबंधों तक की बुनियादी जानकारी नही है। आज भी घरों मे लड़कियों और परिजनों के मध्य यौन रोगों की रोकथाम, माहवारी और डिलीवरी मे हाइजीन आदि की बातों पर पर्दादारी की जाती है। इस पर भी खुली बातचीत होनी चाहिए।

चर्चा का समापन्न बांदा जिले के गांव से आई हुई महिला से हुआ जहां उन्होंने पैनल को बताया कि किस तरह से उनके गांव में पीएचसी और स्वास्थ्य सुविधा न होने की वजह से उनके दो बच्चों की मौत उनके गर्भ में ही हो गई एवं इसी तरह से चर्चा में शामिल हुए अन्य लगों ने भी अपने सवाल पैनल से साझा किये।

इस राउंडटेबल चर्चा ने यह स्पष्ट किया कि तकनीकी उन्नति और सामाजिक बाधाओं के बीच स्वास्थ्य सेवाओं में एक जटिल संतुलन है। डिजिटलीकरण ने सेवाओं की वितरण क्षमता और पहुंच में ज़रूरी सुधार किए हैं, लेकिन यह भी बताया है कि समाजिक पूर्वाग्रह, प्रशिक्षण की कमी और सुरक्षा संबंधी चिंताओं को दूर करना जरूरी है ताकि तकनीकी उन्नति से सभी क्षेत्रों के लोग समान रूप से लाभान्वित हो सकें।

परिचर्चा के अंत में खबर लहरिया की एडिटर-इन-चीफ़ कविता बुंदेलखंडी ने पैनेलिस्ट एवं आये हुए लोगों का अभिनन्दन किया गया। जबकि आयोजन की होस्ट खबर लहरिया की सह संपादक मीरा रहीं है। चंबल मीडिया की निदेशक प्रिया अपनी पूरी टीम के साथ मौजूद थी। वैसे तो स्वास्थ्य एवं तकनीक विस्तृत परिचर्चा का विषय है जिसमें हमारी आधुनिक बनाम गंवई जीवनशैली से लेकर मोबाइल उत्सर्जित विद्युत चुम्बकीय तरंगों व रेडियेशन से स्वास्थ्य पर पड़ते दुष्प्रभाव भी संवाद का हिस्सा हो सकतें है। देखना यह अहम है कि इस कड़ी को भविष्य मे कितनी धार मिलती है।

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