@आशीष सागर दीक्षित, बाँदा
“शहर के ख्यातिप्राप्त नकलविहीन महाविद्यालय पंडित जवाहरलाल नेहरू पीजी कालेज बाँदा के पूर्व छात्र संघ अध्यक्ष एवं अधिवक्ता भाई प्रदीप निगम लाला जी लंबी अस्वस्थता के बाद बीते 24 दिसंबर को मृत्युलोक से प्रस्थान कर गए है। वहीं महाविद्यालय की छात्र राजनीति से बहुजनों की सियासत तक उनकी छाप रही है। दिवंगत प्रदीप निगम लाला ने बाँदा इस महाविद्यालय की सरकारी संपत्ति को पूर्व प्राचार्य एवं वर्तमान मनरेगा लोकपाल से बचाने / हथियाने मे होने वाले छात्र और सामाजिक कार्यकर्ता के आंदोलन मे साथ दिया। वहीं 10 मार्च 2018 को तत्कालीन प्राचार्य के सिविल लाइन आवास के बाहर हुए आंदोलन के गवाह भी रहे है। श्रद्धेय प्रदीप निगम लाला महाविद्यालय के पूर्व प्राचार्य डाक्टर नंदलाल शुक्ला के पुत्र पंकज शुक्ला की साजिशों का शिकार तत्कालीन प्राचार्य के कारखास स्टेनो हरिशंकर श्रीवास्तव की बदनीयती का शिकार हुये थे।
वे वाद संख्या 187/2018 मे आशीष सागर दीक्षित, ऊषा निषाद के साथ कुचक्र के हिस्सेदार बने। वहीं साथ मे वाद संख्या 188/2018 नगर कोतवाली की न्यायिक संघर्ष यात्रा के सहभागी भी थे।”
बाँदा। बुंदेलखंड विश्वविद्यालय से सम्बद्ध 1964 मे स्थापित शहर के प्रसिद्ध पंडित जवाहरलाल नेहरू पीजी कालेज बाँदा से पूर्व छात्र संघ अध्यक्ष / अधिवक्ता प्रदीप निगम लाला चलबसे है। उन्होंने ज़िले मे बहन मायावती की बसपा पार्टी से स्थानीय राजनीति भी की और बतौर अधिवक्ता बार संघ चुनाव मे प्रतिभाग भी किया था। स्वभाव से मृदुल,मिलनसार व्यक्तित्व के धनी भाई प्रदीप निगम लाला लंबे वक्त से शारीरिक इंजरी ( लगातार दो बार कमर से नीचे गुल्ला ) टूटने से बेहद कष्ट मे थे। कई माह इलाज से राहत न मिलने पर उन्होंने 24 दिसंबर की रात अंतिम सांस ली है।
महाविद्यालय संघर्ष के सहभागी-
दिवंगत प्रदीप निगम लाला को पंडित जवाहरलाल नेहरू पीजी कालेज के पूर्व प्राचार्य व वर्तमान मे मनरेगा लोकपाल डाक्टर नंदलाल शुक्ला ने मिथ्या-झूठे मुकदमे मे साजिशन फंसाया था। गौरतलब है कि पूर्व प्राचार्य डाक्टर नंदलाल शुक्ला वर्ष 2003-04 के सत्र मे पंडित जेएन पीजी कालेज बाँदा महाविद्यालय पदस्थ हुए थे। अतर्रा महाविद्यालय मे फिजिक्स के प्रोफेसर रहे डाक्टर नंदलाल ने शैक्षणिक बारीकी और चालबाजी वहीं से सीखी थी। महाविद्यालय की तमाम वित्तीय अनियमितता के दरम्यान पूर्व प्राचार्य ने बाँदा एडीएम वित्त एवं राजस्व बनकर आये श्री दयाशंकर पांडेय से 4 अप्रैल 2015 को महाविद्यालय की भूमि का कुछ रकबा भूखंड संख्या 2431 व 2432 तत्कालीन सदर रजिस्ट्रार श्री राकेश मिश्रा से अवैध तरीके अपनाकर 25 साल के लिए लीज पर लिखापढ़ी करा ली थी। उस वक्त अपर जिलाधिकारी रहे दयाशंकर पांडेय ने इस सरकारी भ्रस्टाचार मे डाक्टर नंदलाल शुक्ला का पूरा साथ दिया था। मामला मीडिया की सुर्खियां बना और फिर जन आंदोलन का मुद्दा भी बन गया।
ताक पर रख दी थी नियमावली-
एडीएम वित्त एवं राजस्व रहे दयाशंकर पांडेय ने सदर रजिस्ट्रार रहे राकेश मिश्रा के साथ ऐसी सांठगांठ इस लीज के वास्ते करी की सारे नियम-कायदे ताक पर रख दिये गए। उन्होंने शासनादेश संख्या 824/सत्रह-वि.-1-72-74 दिनांक 03.03.1975 का खुला उल्लंघन किया। साथ ही महज 20 हजार की स्टाम्प ड्यूटी पर वीआईपी क्षेत्र की महाविद्यालय संपति को पूर्व प्राचार्य डाक्टर नंदलाल शुक्ला एवं उनकी बहू डाक्टर नीतू शुक्ला के नाम लीज लिख दी थी।
इस कार्य के फलस्वरूप पूर्व प्राचार्य ने एडीएम दयाशंकर पाण्डेय की बहन जी का लखनऊ गोमती नगर स्थित मकान 47 लाख मे खरीद लिया। इसके लिए इलाहाबाद बैंक ( अब इंडियन बैंक ) से बकायदा ऋण चेक लिया गया। मकान रजिस्ट्री का गवाह महाविद्यालय के चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी राजकुमार गुप्ता को बनाया गया। उक्त भी सेवानिवृत्त होकर पेंशन ले रहें है। राजकुमार गुप्ता के अवैध कब्जे को जो डिग्री कालेज के सामने था बीते वर्ष सिंचाई विभाग ने अपनी अधिकृत ज़मीन से मुक्त कराया है। इस अवैध रजिस्ट्री की प्रशासनिक जांच सामाजिक कार्यकर्ता आशीष सागर दीक्षित एवं अन्य छात्र नेताओं के संयुक्त शिकायत पर की गई। जांच अधिकारी रहे अपर जिलाधिकारी वित्त एवं राजस्व श्री गंगाराम गुप्ता ने तत्कालीन डीएम श्री महेंद्र बहादुर सिंह को यह तीन पेज की जांच आख्या सौंप दी थी। इसमे पूर्व प्राचार्य पर गम्भीर वित्तीय दोष सिद्ध हुए। मसलन महाविद्यालय मे 6 चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों की अवैध नियुक्ति ( रुपया और सांठगांठ से हुई ),लोकल अखबार मे महाविद्यालय टेंडर प्रकाशन और जनता को खबर नही लगी। महाविद्यालय सामग्री खरीद-फरोख्त गबन, महाविद्यालय भूमि का अवैध पट्टा / लीज का मुद्दा जांच आख्या का हिस्सा रहा। जांच मे एडीएम वित्त राजस्व श्री गंगाराम गुप्ता ने लिखा कि “भूखंड संख्या 2431 प्राचार्य आवास सिविल लाइन कारपोरेट एरिया 81.18 वर्गमीटर है। उस वक्त के सर्किट रेट मुताबिक इसका किराया 19,495 रुपया मासिक होता है। यह वर्षिक 2,33,940 रुपया है। इसको प्राचार्य महज 3 हजार मासिक रुपया मे किराए पर लिए थे। जिससे महाविद्यालय को 1,97,940 रुपया वर्षिक क्षति पहुंचाने का काम किया गया है। उन्होंने जांच मे लिखा था कि भूखंड संख्या 2432 151.33 वर्गमीटर है। इसका वार्षिक किराया तत्कालीन सर्किल रेट से 16,0 2080 रुपया था। इसको डाक्टर नंदलाल ने अपनी बहू नीतू शुक्ला के क्लिनिक के लिए मात्र 2 हजार मे लिया था। महाविद्यालय के सेवानिवृत्त स्टेनो श्री हरिशंकर श्रीवास्तव आज भी 20 हजार रुपया मासिक पर संविदा मे लगे है। इनके नाम पर लाखों रुपया एडवांस पूर्व प्राचार्य ने महाविद्यालय कोष से आहरण किया।
सेवानिवृत्त के बावजूद आवास पर कब्जा –
वर्तमान मनरेगा लोकपाल एवं पूर्व प्राचार्य डाक्टर नंदलाल शुक्ला से 10 मार्च 2018 को बड़े आंदोलन के बाद तत्कालीन डीएम श्री द्वियप्रकाश गिरी ने उन्ही राकेश मिश्रा सदर रजिस्ट्रार के रहते लीज सरेंडर कराई जिन्होंने अवैध लीज की थी। वहीं प्राचार्य बहु के अस्पताल को जमीदोज करके उसमें फूड एवं ड्रग औषधि कार्यालय खोला गया। यह आज वही चलता है। लेकिन पूर्व प्राचार्य ने सेवानिवृत्त के बाद आवास नही छोड़ा। बल्कि कूटरचित ढंग से सिविल जज जूनियर डिवीजन के पास एक केस फ़ाइल कर सरेंडर लीज को चुनौती दी गई। वादी सिविल जज जूनियर व सीनियर दोनों से मुकदमा हार गए। लेकिन पूर्व प्राचार्य के हमराज, हमकदम, हमदर्द और शिष्य वर्तमान महाविद्यालय प्रिंसिपल प्रोफेसर केएस कुशवाहा जी ने उन्हें अमरता का अभयदान दिया। डिस्ट्रिक्ट जज के यहां से फौरी स्टे मिल गया जिसको कालेज प्रशासन, महाविद्यालय पदेन अध्यक्ष ( एडीएम वित्त राजस्व) और शहर के माननीयों व सेल्फी वाली नई पीढ़ी की छात्र राजनीति ने हाईकोर्ट मे चुनौती नही दी है। आज उपरोक्त महाविद्यालय जीर्णोद्धार की आस लगाए खंडहर बनता जा रहा है। लोकपाल मनरेगा / पूर्व प्राचार्य डाक्टर नंदलाल जी आवास के कब्जेदार है औऱ सेवानिवृत्त के बाद भी 40 कमरों में कालेज छात्रावास, टीचर्स कालोनी को अपने दिशानिर्देश से वर्तमान प्राचार्य के माध्यम से संचालित करा रहे है। लोकपाल के छोटे भाई प्रोफेसर रमेश शुक्ला जिन्हें खुद पूर्व प्राचार्य ने लगाया था आज भी डटे है और टीचर्स आवास से लाभान्वित है। साथियों भ्रस्टाचार की इस नजीर से बाँदा न्यायालय मे लड़ने वाले आज हमारे एक साथी भाई प्रदीप निगम लाला नही रहे। उन्हें हार्दिक शोक संतप्त श्रद्धांजलि अर्पित है।
दब गई शिकायत और आबाद है लोकपाल-
पूर्व प्राचार्य डाक्टर नंदलाल शुक्ला की यूं तो शिकायत उत्तरप्रदेश के लोकपाल तक भी वर्ष 2017 को संवाददाता ने की थी। लेकिन उन्होंने एडीएम श्री गंगाराम गुप्ता की जांच आख्या का हवाला देकर लोकसेवक डाक्टर नंदलाल को वित्तीय गबन व भ्रष्टाचार मे दोषी पाए जाने पर दंडित करने की कार्यवाही से हाथ खड़े कर दिए। इस संदर्भ मे उनका पत्र संख्या 875-2017/ 09/3009 दिनांक 28 अगस्त 2017 प्रशांगिक है। वहीं 11 अप्रैल 2018 को डाक्टर ज्ञान प्रकाश वर्मा, क्षेत्रीय उच्च शिक्षा अधिकारी झांसी का पत्र कार्यवाही के वास्ते प्राधिकृत नियंत्रक / प्रशासक महाविद्यालय को लिखा गया लेकिन कार्यवाही नही की गई। इसके बाद पुनः 1 अगस्त 2018 को डाक्टर संध्यारानी क्षेत्रीय उच्च शिक्षा अधिकारी झांसी ने अपर जिलाधिकारी वित्त एवं राजस्व / प्राधिकृत नियंत्रक महाविद्यालय को कार्यवाही के लिए लिखा पर कार्यवाही नही हो सकी। इसके बाद एक बार फिर उच्च शिक्षा निदेशक, उच्च शिक्षा निदेशालय प्रयागराज को उनके पत्रांक संख्या – सं.नि. (उ.शि.)/49/2021-22 दिनांक 9 जुलाई 2021 पर आज तक कार्यवाही मुनासिब नही हो सकी। तब जबकि उक्त उच्च शिक्षा निदेशक प्रयागराज पर जांच आख्या उपलब्ध न करवाने के लिए माननीय सूचना आयुक्त रचना पाल जी ने अपील संख्या एस-3/995/ए/2022 के निर्णय पर 25000 रुपया अर्थदंड लोक सूचना अधिकारी उच्च शिक्षा निदेशक, शिक्षा निदेशालय प्रयागराज पर लगाया था। उल्लेखनीय है लोक सूचना अधिकारी ने आज तक न तो यह जुर्माना भरा और न पूर्व प्राचार्य पर न्यायोचित कार्यवाही करने का साहस किया। उधर बाँदा सीजेएम कोर्ट से मुकदमा अपराध संख्या 187/ 2018 नगर कोतवाली मे लोकपाल के पुत्रों का एनबीडब्ल्यू वारंट एवं मुकदमा 188/2018 मे बी-डब्ल्यू वारंट होने के बावजूद यह अलम्बरदार सभ्रांत न्यायालय के आदेशों को ठेंगा दिखाते है। लेकिन संघर्ष के योद्धाओं को कूटरचित मुकदमों से बाँदा कोर्ट तक चक्कर लगाने के लिए एक निरंकुश सरकार एवं व्यवस्था के परिणाम और प्रतिफल पर मजबूर होना पड़ता है।