महत्वाकांक्षा जरूरी है, लेकिन उसके लिए कुछ न कुछ दांव पर जरूर लगता है। यह अलग बात है कि इसका भान होते-होते बहुत देर हो चुकी होती है। इस समय बिहार में लालू प्रसाद यादव व दिवंगत रामविलास पासवान के परिवार कुछ ऐसी ही परिस्थिति से गुजर रहे हैं। राजनीतिक महत्वाकांक्षाएं रिश्तों की डोर को कमजोर कर रही हैं। एक के यहां भाई-बहनों का रार है तो दूसरे के यहां चाचा-भतीजे के बीच तलवारें खिंची हैं। जिसे मिल गया, वह दूसरों में बांटना नहीं चाहता और जिसे नहीं मिला वो लेने के लिए हर तरह के हाथ-पांव मार रहा है।जप्रताप के इस प्रलाप पर तेजस्वी ने यह कहकर विराम लगाने की कोशिश की कि लालू को कोई बंधक नहीं बना सकता। आरोप की गंभीरता को देखते हुए कार्यकर्ताओं की बैठक में वचरुअली लालू का भाषण कराया गया, जिसमें उन्होंने पटना अभी तक न आ पाने का कारण डाक्टर की हिदायत बताया। अब कहा जा रहा है कि तारापुर विधानसभा क्षेत्र के उपचुनाव में लालू जाएंगे और सभा भी करेंगे। तेजस्वी ऐसा करके एक तीर से दो निशाने लगा रहे हैं। उनको लगता है कि एक तो इससे कार्यकर्ताओं में जोश पैदा होगा और दूसरे लंबे अर्से से बीमारी की हालत में जेल में बंद लालू को सामने लाने से सहानुभूति भी मिल सकती है।
पिछले चुनाव में जंगलराज के नारे से डर कर लालू की तस्वीर तक पोस्टर से हटा देने वाले तेजस्वी इस चुनाव में इस नारे की हकीकत भी परखना चाहते हैं।इधर पार्टी से भी तेजप्रताप को दरकिनार किया जा रहा है। घर वाले तो उनके पक्ष में कुछ बोल नहीं रहे हैं और पार्टी के दूसरे नेता उन्हें उनकी हैसियत बताने में लगे हैं। पार्टी के पुराने नेता शिवानंद तिवारी ने तो यहां तक कह दिया कि तेजप्रताप तो अब पार्टी में हैं ही नहीं। उन्होंने अपनी अलग पार्टी बना ली है और चुनाव चिन्ह भी ले लिया है। इतने गंभीर वक्तव्य के बाद भी घर से कोई आवाज नहीं आई, कोई खंडन नहीं आया। हालांकि बाद में पूछने पर शिवानंद इस बात से थोड़ा मुकरते नजर आए, लेकिन दूसरे दिन उपचुनाव को लेकर जारी स्टार प्रचारकों की सूची में तेजप्रताप का नाम ही गायब दिखा। समझने के लिए काफी था कि वाकई तेजप्रताप का तेज मंद पड़ता जा रहा है। इसका अंदाजा उन्हें भी है इसलिए कुछ महीनों पहले पांडवों की तरह पांच गांव की मांग उन्होंने की थी। जो भले ही हंसी में उड़ा दी गई हो, लेकिन वर्तमान इस बात की तरफ इशारा कर रहा है कि परिवार में उनका कद छोटा होता जा रहा है। इस समय तेजप्रताप फिलहाल शांत हैं और नवरात्र में देवी की आराधना में लगे हैं, लेकिन वे शांत बैठेंगे, ऐसा नहीं लगता।
राजद में जहां अभी दरार वाला हाल है तो वहीं दिवंगत रामविलास पासवान के घर में एक वर्ष के भीतर पूरी तरह फाड़ हो चुका है। उनकी लोक जनशक्ति पार्टी भाई पशुपति कुमार पारस और पुत्र चिराग पासवान के बीच पूरी तरह बंट गई है। अब पारस राष्ट्रीय लोजपा के अध्यक्ष हैं और उनका चुनाव चिन्ह है सिलाई मशीन, जबकि चिराग की पार्टी लोजपा (रामविलास) है और चुनाव चिन्ह हेलीकाप्टर। रामविलास के असली राजनीतिक उत्तराधिकारी की इस लड़ाई में फिलहाल पार्टी का जाना-पहचाना चिन्ह बंगला चुनाव आयोग ने जब्त कर लिया है। उसका फैसला पांच नवंबर के बाद ही होगा, लेकिन चिराग का लिटमस टेस्ट तारापुर और कुशेश्वरस्थान में होने वाले उपचुनाव में ही हो जाएगा। चिराग दोनों ही क्षेत्रों में नई पहचान हेलीकाप्टर के सहारे कूद रहे हैं। चिराग के इस आत्मविश्वास के पीछे कारण पार्टी के नाम के आगे रामविलास जुड़ना है। चिराग भले ही चुनाव न जीतें, लेकिन पार्टी और घर बंटने, चुनाव चिन्ह छिनने के बाद भी अगर वे पिछले विधानसभा चुनाव से अधिक मत ले आते हैं या जदयू की हार का कारण बनते हैं तो वही उनकी जीत होगी। पिछली बार जब पूरी लोजपा एक थी, चाचा हल्के-हल्के ही नाराज थे तब तारापुर में 11,264 और कुशेश्वरस्थान में पार्टी को 13,362 वोट मिले थे। इससे बढ़ना और घटना दोनों ही उनके कद पर असर डालेगा।
लालू परिवार में बड़े बेटे तेजप्रताप के दिन ठीक नहीं चल रहे हैं। वो राष्ट्रीय जनता दल (राजद) और घर, दोनों में अलग-थलग पड़ गए हैं। कोई उनकी नहीं सुन रहा। लालू इन दिनों दिल्ली में अपनी बड़ी बेटी मीसा भारती के घर में स्वास्थ्य लाभ ले रहे हैं। इधर पार्टी की एक तरह से पूरी कमान संभाले छोटे बेटे तेजस्वी का तो मीसा के घर आना-जाना है, लेकिन तेजप्रताप की लगता है इंट्री तक नहीं हो पा रही। तेजप्रताप का यह कहना कि चार-पांच लोगों ने उन्हें (लालू को) बंधक बना लिया है, इसी तरफ इशारा करता है।