कोर्ट ने कहा वैक्सीन विकसित करने में सरकार का भी पैसा लगा है। इसलिए, यह सार्वजनिक संसाधन है। साथ ही सवाल किया, ‘केंद्र सरकार 100 फीसद वैक्सीन क्यों नहीं खरीद रही। एक हिस्सा खरीद कर बाकी बेचने के लिए वैक्सीन निर्माता कंपनियों को क्यों स्वतंत्र कर दिया गया है?’ जस्टिस चंद्रचूड़ ने सोशल मीडिया पर पीड़ा का इजहार करने वाल यूजर्स का मुद्दा भी उठाया और कहा कि यदि लोग सोशल मीडिया के जरिए अपने हालात बयां कर रहे हैं उसपर कार्रवाई नहीं की जा सकती।
केंद्र से कोर्ट ने यह भी सवाल किया कि राष्ट्रीय स्तर पर अस्पताल में भर्ती को लेकर क्या नीति है और जिस संक्रमण माले का RTPCR से पता नहीं लग रहा उसके लिए क्या कदम उठाए गए। जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा, ‘केंद्र को वैक्सीन के निर्माण में तेजी लाने के लिए किए गए निवेश का ब्यौरा भी देना चाहिए। यह निजी वैक्सीन निर्माताओं को किए गए फंडिंग में केंद्र का अहम हस्तक्षेप होगा।’ सुप्रीम कोर्ट में शुक्रवार को कोरोना महामारी केंद्र द्वारा उठाए गए कदमों को लेकर सुनवाई जारी है। कोर्ट ने कहा, ‘इंफार्मेशन को आने से नहीं रोकना चाहिए, हमें लोगों की आवाज सुननी चाहिए।’ सुनवाई के दौरान जस्टिस चंद्रचूड़ ने ऑक्सीजन सप्लाई के आवंटन का मुद्दा उठाया।
उन्होंने कहा, ‘केंद्र सरकार के पक्ष की हम समीक्षा करेंगे। ऑक्सीजन सप्लाई को लेकर ऐसी व्यवस्था बनेे कि लोगों को पता चल सके कि ऑक्सीजन की सप्लाई कितनी की गई और कौन से अस्पताल में यह कितना है।’ सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से वैक्सीनेशन की प्रक्रिया को लेकर सवाल किया। कोर्ट ने पूछा कि वैक्सीन की कीमत में अंतर क्यों रखा गया और निरक्षर लोग जो कोविन ऐप इस्तेमाल नहीं कर सकते, वे वैक्सीनेशन के लिए कैसे पंजीकरण करवा सकते हैं?’
बता दें कि महामारी के संकट से निपटने के लिए केंद्र सरकार द्वारा दिए गए राष्ट्रीय योजना पर विचार किया जाना है। कोर्ट ने केंद्र से स्पष्ट रूप से पूछा है कि क्या कोरोना से निपटने के लिए सेना का इस्तेमाल किया जा सकता है और टीकाकरण के अलग-अलग कीमतों का आधार और तर्क क्या हैं। शीर्ष अदालत में जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस एल नागेश्वर राव और जस्टिस रवींद्र भट की पीठ इस मामले की सुनवाई कर रही है। कोर्ट ने इस मामले का स्वतः संज्ञान लेते हुए सुनवाई शुरू की है।