आनन्दी बेन के सकारात्मक प्रयास – डॉ दिलीप अग्निहोत्री


राम नाईक ने राज्यपाल के रूप में संवैधानिक सक्रियता की मिसाल कायम की थी। यह अनुमान है कि आनन्दी बेन इस विरासत को सम्पन्न बनायेगीं। उनको भी पर्याप्त प्रशासनिक अनुभव है, वह गुजरात में कई वर्षों तक कैबिनेट मंत्री रही। इस रूप में उन्होंने अनेक अभिनव कार्य किये। इसके बाद वह मुख्यमंत्री भी बनी। इस दायित्व में भी उन्होंने कम समय में बेहतरीन कार्य किया। मध्यप्रदेश के बाद वह उत्तर प्रदेश जैसे बड़े राज्य की राज्यपाल बनी है। उनकी राजनीतिक पृष्ठिभूमि के आधार कार्यशीली का अनुमान लगाया जा सकता है।
वह गुजरात में नरेंद्र मोदी की सहयोगी रही है। मोदी की सक्रियता और कुछ नया करने की चाहत अब पूरा देश जनता है। मुख्यमंत्री के रूप में उन्होंने गुजरात का अभूतपूर्व विकास किया। वहाँ भी मोदी अपनी विशिष्ट कार्यशीली के लिए विख्यात थे। इसी के बल पर वह लोकप्रिय हुए थे। अपने कार्यो से वह इतनी बड़ी लकीर खींच देते है, जहाँ तक उनके वीरोधी पहुंचने की कल्पना भी नहीं कर सकते। यही कारण है कि गुजरात में डेढ़ दशक तक विपक्ष ने उन्हें घेरने में कोई कसर नहीं छोड़ी, लेकिन जनता का विश्वास मोदी को ही हासिल होता रहा। इस आधार पर मोदी के सहयोगियों के संबन्ध में भी अनुमान लगाया जा सकता है। मेहनत और ईमानदारी से अपने कर्तव्यों का निर्वाह करने वाले, कुछ नया करने का जज्बा रखने वालों पर ही नरेंद्र मोदी का विश्वास रहा है। मुख्यमंत्री से लेकर प्रधानमंत्री तक मोदी का यही नजरिया रहा है। इसी विश्वास के साथ गुजरात मंत्री परिषद में उनके सहयोगी अमित शाह को भाजपा का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया गया था। अब वह मोदी मंत्रिमंडल में सर्वाधिक प्रभावशाली है। पार्टी अध्यक्ष के साथ वह गृहमंत्री भी है।
इसी प्रकार दो हजार चौदह में जब नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बने तो उन्होंने गुजरात में अपना उत्तराधिकार आनन्दी बेन को सौंपा। वह मुख्यमंत्री बनी थी।
अब वह देश के सबसे बड़े राज्य की मुख्यमंत्री है। इस रूप में भी उन्होंने आते ही अपनी कार्यशैली की बानगी दी है। शपथ ग्रहण करने के बाद उनका पहला सार्वजनिक कार्यक्रम एक स्कूल में था। यहाँ वह छोटे बच्चों से बहुत आत्मीयता से मिली।
वह लखनऊ के प्राग नारायण रोड स्थित राजकीय बालगृह शिशु और राजकीय दत्तक गृह पहुंचीं। वहां उन्होंने बच्चों से बातचीत की। स्नेह से उनके सिर पर हाँथ रखा। यह बच्चों के लिए बड़ी भावुकता का समय था। प्रदेश की राज्यपाल सबसे पहले उनके पास आई थी। उन्होंने बालगृह की स्थिति के बारे में भी जानकारी मांगी। उसमें सुधार के निर्देश दिए। इस राजकीय बालगृह शिशु में नवजात से लेकर दस वर्ष के बच्चे रहते हैं। यहां की क्षमता पचास की है। जबकि इस समय यहां चौरासी बच्चे रह रहे हैं। राज्यपाल ने बालगृह के प्रथम तल पर अतिरिक्त कमरे बनवाने का सुझाव दिया। उन्होंने डॉरमेट्री देखी तो वहां भी जगह काफी कम थी। इसी तरह दत्तक गृह में क्षमता दस की है लेकिन यहां सत्ताईस बच्चे रह रहे हैं।राज्यपाल ने बालगृह के बच्चों को फल एवं चाकलेट उपहार स्वरूप दिया। राज्यपाल ने बालगृह के न्यायालय कक्ष, बाल कल्याण समिति कक्ष, शिक्षण कक्ष, दत्तक ग्रहण ईकाई कक्ष एवं दिव्यांग बच्चों के कक्ष का निरीक्षण किया तथा बारीकी से बच्चों के बारे में जानकारी भी प्राप्ति की। उन्होंने बच्चों के सिर पर हाथ फेरकर दुलार किया तथा बच्चों ने उन्हें ‘बच्चे मन के सच्चे’ तथा ‘एक कौआ प्यासा था’ गीत गाकर भी सुनाया। आनन्दी बेन बाल कक्ष से निकलकर रसोई घर व भोजन कक्ष का भी निरीक्षण किया। खाना बना रही महिलाओं से पूछा कि बच्चों के लिये आज क्या बन रहा है और नवजात शिशुओं के लिये क्या व्यवस्था है। उन्होंने यह भी जानकारी प्राप्त की कि कुपोषित बच्चों के लिये डाइट चार्ट और चिकित्सकों की क्या व्यवस्था है।
यह प्रकरण एक बाल गृह तक सीमित लग सकता है, लेकिन इसका महत्व बहुत व्यापक है। राज्यपाल सक्रिय ही नहीं संवेदनशील भी है। इसी भावना से उन्होंने यह जानने का प्रयास किया कि बच्चों के लिए क्या के क्या खाना बन रहा है, शिशुओं के लिए क्या व्यवस्था की जा रही है। राज्यपाल प्रदेश के बत्तीस विश्वविद्यालयों की कुलाधिपति भी है। उनके बाल गृह के निरीक्षण से यह अनुमान भी लगाया जा सकता है कि वह उच्च शिक्षा पर भी पर्याप्त ध्यान देंगी।
इतना ही नहीं भोपाल से लखनऊ आगमन से पहले भी उन्होंने अपनी नई सोच का परिचय दिया। उन्होंने स्वागत में किताब या खाद्य सामग्री देने का निर्देश दिया। आजकल पुष्पगुच्छ के द्वारा किसी को सम्मानित करने का चलन बढा है। यहां तक कि लोग सामाजिक उत्सवों में भी पुष्पगुच्छ से ही व्यवहार का निर्वाह करने लगे है। जबकि यह किसी के लिए यादगार सौगात नहीं होती। फूल जल्दी ही कुमल्हा जाते है, फिर उन्हें कचरे में फेंक दिया जाता है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्वागत के समय केवल एक फूल देने का चलन शुरू किया। आनन्दी बेन गुजरात में उन्हीं के मंत्रिमंडल में थी। जाहिर है कि नरेंद्र मोदी की यही कार्यशैली रही होगी। उनके सभी सहयोगियों को इससे प्रेरणा मिली होगी। इस बात का प्रमाण आनन्दी बेन ने लखनऊ पहुंचने से पहले ही दे दिया। मनोनीत राज्यपाल आनंदीबेन ने नवाचार के तौर पर कहा है कि भेंट के अवसर पर पुष्प गुच्छ आदि के बजाय पुस्तकें एवं खाद्य वस्तुएं दी जानी चाहिए जिन्हें किसी जरूरतमंद को दिया जा सके। जो किसी के उपयोग में आ सके। आनंदीबेन पटेल का मानना है कि पुष्प स्वीकार कर निश्चय ही सुखद अनुभूति होती है पर फूल के खराब होने के साथ पैसे भी बेकार हो जाते हैं। उसकी अपेक्षा यदि कोई पुस्तक या खाद्य वस्तु आदि हो तो वह जरूरतमंद बच्चों को भी भेजी जा सकती है। इससे पूर्व भी वे राजभवन मध्य प्रदेश में खाद्य वस्तुओं एवं किताबों को अनाथालय, वृद्धाश्रम और मलिन बस्तियों के बच्चों को उपहार स्वरूप भेजती रही हैं।
गुजरात सरकार में रहते हुए भी भी नए कार्य करने के लिए प्रसिद्ध थी। उन्नीस सौ नवासी में शिक्षा और महिला एवं बाल कल्याण मंत्री बनी। उन्नीस सौ सत्तासी में उन्हें वीरता पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। एक छात्रा को डूबने से बचाने के लिए वे खुद झील में कूद गई थीं। शहरी विकास और राजस्व मंत्री उन्होने ई-जमीन कार्यक्रम, जमीन के स्वामित्व डाटा और जमीन के रिकॉर्ड को कंप्यूटरीकृत करके जमीन के सौदों में होने वाली गड़बड़ी को कम कर दिया। इस योजना से गुजरात के अधिकांश किसानों के अंगूठे के निशानों और फोटो का कंप्यूटरीकरण किया गया। उनके इस कार्य की सराहना पूरे देश में हुई थी।
उन्नीस सौ नवासी से दो हजार सात तक गुजरात की शिक्षा, उच्च और तकनीकी शिक्षा, महिला एवं बाल कल्याण, खेल, युवा एवं सांस्कृतिक गतिविधियां की मंत्री रही। दो हजार सात से दो हजार चौदह तक मुख्यमंत्री लोक निर्माण, भवन निर्माण, राजस्व, शहरी विकास और शहरी आवास, महिला एवं बाल कल्याण, आपदा प्रबंधन और राजस्व मंत्री रहीं।
आनंदीबेन पटेल ने राजभवन के समस्त अधिकारियों के साथ बैठक करके सभी का परिचय प्राप्त किया। राजभवन के सभी प्रभागों की जानकारी प्राप्त की।कार्य को और अधिक अच्छे से करने के लिये कुछ निर्देश दिये। अपने अनुभव भी साझा किये।
शिक्षा एवं उच्च शिक्षा से संबंधित मामले, चिकित्सा, उद्यान, गौशाला, राजभवन को प्राप्त होने वाले पत्रों आदि के बारे में बारीकी से जानकारी प्राप्त की। कहा कि चिकित्सक राजभवन के कर्मचारियों के बच्चों के स्वास्थ्य पर विशेष ध्यान दें। अभिभावकों को उचित भोजन और बीमारी के उपचार के साथ साथ रोग से बचने के उपायों से भी अवगत करायें। राजभवन में कार्यरत रूपये पांच लाख से कम वार्षिक आय वाले चतुर्थ श्रेणी कर्मी, संविदा कर्मी तथा दैनिक वेतन भोगी कर्मचारी को चयनित करके ‘आयुष्मान भारत प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना’ के अंतर्गत उनके कार्ड बनवाने का भी निर्देश दिया।
उन्होंने राजभवन के उद्यान और गौशाला को भी देखा। फलदार वृक्ष के नीचे गिरे फलों को देखकर उन्होंने सुझाव दिया कि फलों के पकने पर उन्हें सफाई से धोकर आंगनबाड़ी, प्राथमिक या माध्यमिक विद्यालय के बच्चों को भी भेजा जा सकता है। गौशाला जाकर उन्होंने गायों को गुड़ और रोटी खिलाई तथा पशु चिकित्सकों से गायों के बारे में जानकारी भी ली।
आनन्दी बेन ने राजभवन के द्वार आमजन के लिए खोलने के भी निर्देश दिए। आमजन मंगलवार एवं बृहस्पतिवार सायं चार बजे से छह बजे तक राजभवन का भ्रमण कर सकेंगे। छात्र-छात्राएं सोमवार से शनिवार सुबह नौ बजे
से सायं पांच बजे तक राजभवन देखने आ सकते हैं। राज्यपाल को मुख्यमंत्री ने प्रदेश में चल रही केन्द्र एवं राज्य सरकार की योजनाओं के बारे में जानकारी दी। तथा प्रदेश के विकास से जुड़े विभिन्न मुद्दों पर चर्चा भी की।
बालगृह से आये बच्चों को साईकिल,खिलौने भेंट किये।
बच्चों ने ‘तुम्हीं ओ माता, पिता तुम्हीं हो’ प्रार्थना भी गाकर सुनायी जिस पर राज्यपाल एवं मुख्यमंत्री ने ताली बजाकर बच्चों का उत्साहवर्धन भी किया।
राज्यपाल ने राजभवन के एलोपैथ, आयुर्वेद, होम्योपैथी एवं यूनानी चिकित्सकों को बुलाकर बच्चों का स्वास्थ्य परीक्षण कराया और आवश्यकतानुसार उन्हें दवाएं भी उपलब्ध करवायी।
ये सभी कार्य आनन्दी बेन ने शपथ ग्रहण के दो तीन दिन के भीतर ही सम्पन्न किये। इस आधार पर अनुमान लगाया जा सकता है कि वह सक्रिय राज्यपाल की अवधारणा को चरितार्थ करेंगी।

Like us share us

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *